कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 3,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 3,PART -2 FULL HAND WRITTEN NOTES

 

कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 3,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 3,part -2, FULL HAND WRITTEN NOTES

(i) समयुग्मक (isogamous type)- कुछ शैवालों में युग्मक बाहय आकृति एवं परिमाण में समान होते हैं। ऐसे युग्मकों को समयुग्मक
कहते हैं। युग्मक कशाभिकीय हो सकते हैं, जैसे क्लेमाइडोमोनास तथा यूलोथ्रिक्स अथवा अकशाभिकीय, जैसे- स्पाइरोगाइरा में।

(ii) विषमयुग्मकी (Anisogamous type)- कुछ शैवालों में युग्मक बाह्य आकृति में तो समान होते हैं किन्तु कार्य, व्यवहार एवं परिमाण
में भिन्न होते हैं। इनमे एक युग्मक बड़ा होता है जिसे दीर्घ युग्मक कहते हैं और वह निष्क्रिय होता है। दूसरा युग्मक छोटा तथा सक्रिय होता
है जिसे लघुयुग्मक कहते हैं। दोनों युग्मकों में कशाभिकाएं होती है। दोनों युग्मकों के संयोजन से जो युग्माणु बनता है, वह बाद में अर्धसूत्री
विभाजन करके नए पौधों को जन्म देता है, जैसे क्लेमाइडोमोनास में।

(iii) अण्डयुग्मकी (Oogamous type)- इनमे नर युग्मक छोटा तथा व्दिकशाभिकीय होता है, जबकि मादा युग्मक बड़ा, निष्क्रिय तथा
अकशाभिकीय होता है। नर तथा मादा युग्मक संयोजन के बाद युग्मनज का निर्माण करते है, जैसे- क्लेमाइडोमोनास, कारा तथा ऊडोगोनियम
में| बाद में युग्मनज अर्धसूत्री विभाजन के बाद नए पौधे को जन्म देता है |
शैवालों का आर्थिक महत्त्व

1. शैवाल खाद्य के रूप में

(i) शैवालों में कार्बोहाइड्रेट्स, अकार्बनिक पदार्थ तथा विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। विटामिन A, C, D और E इनमे मुख्य रूप से

पाए जाते हैं।

(ii) लेमिनेरिया नामक शैवाल से आयोडीन उत्पन्न होता हैं।

(iii) अल्वा (Ulva) को प्रायः समुद्री सलाद कहते हैं।

(iv) क्लोरेला में प्रोटीन्स एवं विटामिन्स की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। एक अन्य शैवाल स्पाइरुलिना में प्रोटीन्स की मात्रा सर्वाधिक होती है।
(v) सारगासम तथा मैक्रोसिस्टिस आदि पालतू पशुओं के भोजन के रूप में काम आते हैं।

2. शैवाल व्यवसाय मे

(i) एलजिन नामक पदार्थ समुद्री शैवालों, जैसे- एलेरिया, लेमिनेरिया से प्राप्त किया जाता है तथा यह टाइपराइटर के रोलर तथा अज्वलनशील फिल्मों के निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोग देता है। लकड़ी को अज्वलनशील बनाने, कृत्रिम रेशे तैयार करने एवं शल्य चिकित्सा के समय जल प्रवाह रोकने तथा आइसक्रीम में बड़े क्रिस्टलों को बनने से रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

(ii) जापान में सारगासम से कृत्रिम ऊन का निर्माण किया जाता है।

(iii) कैरागिनीन- यह कॉड्स, आयरिश मॉस से प्राप्त किया जाता है, जिसका प्रयोग श्रृंगार-प्रसाधनों, जूतों की पॉलिश, शैम्पू आदि बनाने में

होता है। (iv) अगार अगार (Agar-agar)- जेलीडियम तथा बेसिलेरिया जाति की लाल शैवाल से प्राप्त अगार अगार नामक पदार्थ प्रयोगशाला में पौधों

के संवर्धन सम्बन्धी प्रयोग करने में प्रयुक्त किया जाता है। यह पदार्थ जैली, आइसक्रीम आदि बनाने के काम भी आता है।

3. शैवाल कृषि में शैवाल जैसे- नोस्टोक, एनाबीना आदि मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।

4. शैवाल जैव अनुसन्धान कार्यों में प्रकाश संश्लेषण की क्रियाओं का आधुनिक ज्ञान क्लोरेला नामक शैवाल पर किये गए प्रयोगों तथा अनुसन्धानों पर आधारित है।

शैवालों का हानिकारक प्रभाव उपर्युक्त लाभदायक कार्यों के अतिरिक्त कुछ शैवाल; जैसे माइक्रोसिस्टिस, आसिलेटोरिया, एनाबिना आदि

जलाशय में जलउफान (water blooms) पैदा करके गन्ध उत्पन्न करते हैं। इससे जल सड़ जाता है जिससे मछलियाँ मर जाती हैं तथा जल

पशुओं आदि के पीने योग्य नही रहता |

शैवालों का वर्गीकरण- शैवालों को निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया गया है

वर्ग (class) 1- क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)- हरी शैवाल, इनकी विशेषताएँ निम्न हैं

1. ये प्रायः हरे रंग की शैवाल हैं जो प्रायः ताजे जल में में पाए जाते हैं।

2. इनकी पादप संरचना एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय होती है।

3. क्लोरोप्लास्ट में पर्णहरिम-a तथा b और कैरोटिनोइड्स पाए जाते हैं।

4. खाद्य संचय के लिए इनके क्लोरोप्लास्ट में एक या अधिक डिस्क जैसी संरचना होती है जिसे पाइरिनाइड्स (pyrenoids) कहते हैं।

5. कोशिका – भित्ति सेल्युलोज की बनी होती है जिसके बाहर पेक्टोज (pectose) की एक परत होती है।

6. भोजन स्टार्च के रूप में संगृहीत होता है।

7. इनमे अलैंगिक जनन चलबीजाणु व्दारा होता है और इनमे सभी पक्ष्माभ (cilia) बराबर होते हैं।

8. इनमे लिंगी जनन समयुग्मकी (isogamous ), विषमयुग्मकी (anisogamsous) और अण्डयुग्मकी (oogamous) प्रकार का होता है।
उदाहरण- यूलोथ्रिक्स (Ulothrix ). स्पाइरोगाइरा ( Spirogyra) वाल्वोक्स (Volvox), क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas ) एवं अल्वा (Ulva)|

वर्ग (class) 2- जैन्थोफाएसी (Xanthophyceae)- इनके लक्षण निम्न हैं

1. ये शैवाल हरे पीले रंग के होते हैं।

2. इनके क्रोमैटोफ़ोर्स (Chromatophores) में जैन्थोफिल मुख्य वर्णक हैं।

3. इनमें पाइरिनाइड्स नहीं होते हैं तथा संग्रहीत भोजन वसा के रूप में होता है। 4. पर्णहरिम- उपस्थित, किन्तु पर्णहरिम-b के स्थान पर पर्णहरिम- होता है।

उदाहरण- माइक्रोस्पोरा (Microspora )

वर्ग (class) 3- फियोफाएसी (Phyophyceae)- भूरी शैवाल, इनकी विशेषताएं निम्न हैं

1. ये शैवाल पीले भूरे रंग के होते हैं। ये मुख्यतः समुद्री जल में पाए जाते हैं।

2. इनमे फ्यूकोजैन्थिन (Fucoxanthin) नामक मुख्य रंग द्रव्य होता है। इसके अतिरिक्त पर्णहरिम-a, C, कैरोटीन व जैन्थोफिल भी पाए जाते हैं।

3. सेलुलोज की बनी कोशिकाभिति के बाहर ऐल्गीन (algin ) की बनी जिलेटीनस कोट (gelatinous coating) होती है।

4. पौधा मुख्यतः होल्डफास्ट व्दारा आधार (substratum) से लगा रहता है, इसमें एक वृत (stalk) होता है जिसे स्टाइप (stipe) कहते हैं, और पती जैसी संरचना होती है जिसे फ्रांड (frond) कहते हैं।

5. संग्रहीत भोज्य पदार्थ एल्कोहल के रूप में मैनीटोल (manitol), लेमिनेरिन स्टार्च और वसा होते हैं।

6. लैंगिक जनन आइस, एनआइसो एवं उगैमस प्रकार का होता है।

उदाहरण- फ्यूकस (Fucus) सारगासम (Sargassum). एक्टोकार्पस (Ectocarpus), लेमिनेरिया (Laminaria), डिक्टियोटा (Dictyota) |

वर्ग (class ) 4- रोडोफाएसी (Rhodophyceae)- लाल शैवाल, इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं

1. ये शैवाल लाल रंग के होते हैं, क्योंकि इनमें फाइकोएरिथ्रिन नाम का रंग द्रव्य पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें कुछ मात्रा में फ़ाइकोसाइनिन, क्लोरोफिल कैरोटिन एवं जैन्थोफिल भी पाया जाता है।

2. संगृहीत भोज्य पदार्थ फ्लोरिडियन स्टार्च के रूप में पाया जाता है।

3. ये प्रायः समुद्र में पाए जाते हैं। इनमे लिंगी जनन अण्डयुग्मकी होता है।

4. पर्णहरिम-8 के स्थान पर पर्णहरिम-d होता है।

उदाहरण- पालीसाइफोनिया (Polysiphonia), पोरफाइरा (Porphyra) बेसिलेरिया (Gracilaria), जेलिडियम (Gelidium) |
ब्रायोफाइट्स (Bryophytes )- ये पौधे प्रायः छोटे होते हैं और सर्वव्यापी हैं। इनमे संवहन ऊतक नही होता | नर जननांग पुंधानी (antheridium) होता है और मादा जननांग स्त्रीधानी (archegonium ) होता है। ये दोनों अंग बहुकोशिकीय होते हैं। ये पौधे स्थलीय होने के साथ ही छायादार स्थानों जैसे नम स्थानों, नम दीवारों, नम भूमि, लकड़ी के लट्ठों, नदी व तालाब के किनारे के वृक्षों, तनो तथा नम – चट्टानों पर पाए जाते हैं। वर्षा ऋतू में ये अधिक वृद्धि करते हैं तथा भूमि पर एक हरी मखमली परत के रूप में फैले हुए दिखाई देते हैं। ब्रायोफाइट्स के विशिष्ट लक्षण

1. इस समुदाय के अधिकाँश पौधे हरे होते हैं तथा पृथ्वी पर नम एवं छायादार स्थाओं पर उगते हैं। किन्तु निषेचन के लिए जल की आवश्यकता होती है अतः इन्हें पादप जगत का उभयचर (Amphibians of plant kingdom) कहते हैं। कुछ ब्रायोफाइट्स जल में भी पाए जाते हैं; जैसे- रिक्सिया फ्लुटांस (Riccia fluitans)

2. ये पौधे छोटे और थैलस की तरह होते हैं। कुछ उच्च श्रेणी के ब्रायोफाइट्स में वास्तविक जड़े, तना तथा पतियां तो नही होती, परन्तु

पौधे में तने तथा पत्ती के समान संरचनाएं मिलती है। जड़ों के स्थान पर मूलांग ( rhizoids) होते हैं। ये मूलांग पौधों को स्थिर रखने और भूमि से खनिज लवण का अवशोषण करने में सहायक होते हैं।

3. मुख्य होता है। पौधा युग्मकोद्भिद ( gametophyte) होता है जिस पर जननांग उत्पन्न होते हैं। क्लोरोफिल की उत्पति के कारण यह स्वपोषित

4. लैंगिक जनन विषमयुग्मकी होता है।

5. नर जननांग को पुंधानी (antheridium) कहते हैं। यह बहुकोशिकीय होता है।

6. मादा जननांग को स्त्रीधानी (archegonium) कहते हैं। यह भी बहुकोशिकीय होता है।

7. मादा युग्मक को अण्डगोल (oosphere) तथा नर युग्मक को पुमणु (antherozoid) कहते हैं। नर युग्मक व्दिकशाभिकीय (biflagellate) तथा गतिशील होता है। मादा युग्मक गतिहीन होता है।

8. इनके निषेचन के लिए जल आवश्यक है। पुमणु जल की उपस्थिति में स्त्रीधानी के सम्पर्क में आते हैं तथा अण्डगोल से संयुग्मन करके युग्मनज बनाते हैं।

9. निषेचित अंडा (युग्मनज) व्दिगुणित ( diploid) होता है। यह बीजाणुद्भिद को जन्म देता है जिसे स्पोरोगोनियम (sporogonium) या द्भिद (sporophyte) कहते हैं।

10. बीजाणुद्भिद पूर्णतः या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद पर निर्भर रहता है।

11. बीजाणुद्भिद में बीजाणु बनते हैं। बीजाणु अंकुरित होकर नया युग्मकोद्भिद बनाते हैं।

12. ब्रायोफाइट्स में पीढ़ी एकांतरण स्पष्ट रूप में होता है।

संरचना- इनका मुख्य पौधा युग्मकोद्भिद होता है। यहाँ हरे रंग का सूकाय या थैलस (thallus ) होता है; जैसे- रिक्सिया (Riccia), मार्केन्शिया अथवा यह ‘मूलांग’, पत्ती एवं तने में विभाजित जैसे- मॉस ( moss)| इन पौधों में ऊतक तंत्र कम विकसित होते हैं। केवल मृदूतक कोशिकाएं पायी जाती हैं तथा संवहन ऊतक (vascular tissue) अनुपस्थित होता है।
जनन- ब्रायोफाइट्स में जनन दो प्रकार से होता है

1. वर्धी या कायिक जनन (Vegetative reproduction )

2. लैंगिक या लिंगी जनन (Sexual reproduction)

1. वर्धी या कायिक जनन (Vegetative reproduction)- युग्मकोद्भिद में विविध प्रकार का वर्धी जनन होता है; जैसे- विखंडन (fragmentation), जेमा (gemma) ट्यूबर (tuber), पत्र-प्रकलिका (Bulbil) आदि |

2. लैंगिक जनन (sexual reproduction)- इस वर्ग में लैंगिक जनन विषमयुग्मकी होता है, अर्थात निश्चित नर पुंधानी (antheridium) तथा मादा स्त्रीधानी (archegonium) होते हैं। पुन्धानी में पुमणु (antherozoids) होते हैं जो चल ( motile) व व्दिकशाभिकीय (biflagellated) होते हैं। स्त्रीधानी में एक गोल व अचल अण्ड (oospore = egg) होता है। निषेचन के लिए जल की उपस्थिति अत्यंत आवश्यक होती है। अण्ड और पुमणु के संलयन से व्दिगुणित युग्मनज बनता है जिसे निषिक्तांड (oospore) कहते हैं। निषिक्तांड एक बीजाणुद्भिद को जन्म देता है जिसे स्पोरोगोनियम कहते हैं। बीजाणुद्भिद पूर्णरूप से या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद पर निर्भर करता है। कुछ पौधों जैसे- Riccia में बीजाणुद्भिद बहुत साधारण होता है। मॉस में यह पाद (foot), सीटा (seta), और सम्पुटिका (capsule) में विभाजित रहता है| सम्पुटिका में अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप बीजाणु )spores) बनते हैं जो सभी एक प्रकार के होते हैं। बीजाणु अंकुरण करके सीधे नया पौधा बनाते हैं या पहले पुतन्तु बनाते हैं जिससे युग्मकोद्भिद का विकास होता है।

इस प्रकार से ब्रायोफाइट्स के सदस्यों में निश्चित प्रकार का पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generation) होता है।

पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generation)- लैंगिक जनन के दौरान युग्मकोद्भिद पौधे पर नर एवं मादा युग्मकों के संयुग्मन से व्दिगुणित युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मनज सूत्री विभाजन व्दारा एक बहुकोशिकीय भ्रूण का निर्माण करता है। भ्रूण विकसित हो व्दिगुणित बीजाणुद्भिद बनाता है। बीजाणुद्भिद के सम्पुटिका में अर्धसूत्री विभाजन व्दारा अगुणित बीजाणु का निर्माण होता है। प्रत्येक बीजाणु अंकुरित होकर पुनः एक नए युग्मकोद्भिद पौधे का निर्माण करता है।

उपर्युक्त के अनुसार, यदि किसी पौधे के जीवन चक्र में युग्मकोद्भिद एवं बीजाणुद्भिद पीढ़ियाँ क्रमशः एक के बाद एक आती रहें तो इसे पीढ़ी एकांतरण कहते हैं।