कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 3,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 3,part -3, FULL HAND WRITTEN NOTES

 

कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 3,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 3,part -3, FULL HAND WRITTEN NOTES

6. प्रोथैलस- यह एक हरे रंग की चपटी, पतली, हृदयाकार संरचना होती है और भूमि पर लेटी हुई दशा में बढती है। प्रोथैलस के पश्च, संकरे सिरे के निचले भाग से मूलाभास (rhizoid) निकलते हैं। मूलाभास बनाने वाली कोशिकाओं के अतिरिक्त प्रत्येक कोशिका में हरितलवक पाए जाते हैं जिस कारण इनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है तथा यह स्वपोषी होता है।

7. जननांग फर्म का प्रोथैलस एक उभयलिंगाश्रयी संरचना है अर्थात एक ही प्रोथैलस पर नर एवं मादा जननांग बन जाते हैं। नर जननांग पुंधानी (antheridia) होती हैं तथा मादा जननांग स्त्रीधानियाँ (archegonia) होती हैं।

8. पुंधानी तथा नर युग्मक- यह एक गोल, एककोशिका मोटी भिति वाली संरचना होती है। इसके अन्दर 20-50 तक नर युग्मक अर्थात पुमणुओं का निर्माण होता है। पुमणु एक स्प्रिंग के समान बहुपक्ष्माभिक तथा सचल होते हैं।

9. स्त्रीधानी तथा मादा युग्मक- एक परिपक्व स्त्रीधानी फ्लास्क के समान तिरछी गर्दन वाली संरचना होती है। स्त्रीधानी में अण्डा (oospore) होता है| अण्डाणु ही अचल मादा युग्मक है।

10. निषेचन- निषेचन की क्रिया के लिए जल आवश्यक होता है। स्त्रीधानी के परिपक्व होने पर इसका मुंह खुल जाता है। इस समय मुंह पर उपस्थित कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। श्लेष्मक मुंह से बाहर निकलने लगता है जिसमें उपस्थित मैलिक अम्ल से आकर्षित होकर पुमणु जल में तैरते हुए स्त्रीधानी में घुस आते हैं। इनमे से एक अण्डाणु में प्रवेश कर इसे निषेचित करता है। इस प्रकार अण्डाणु से व्दिगुणित युग्मनज बनता है। शीघ्र ही युग्मनज अपने चारों ओर एक मोटी भिति का निर्माण करता है और निषिक्तांड में बदल जाता है।

11. भ्रूण तथा नए बीजाणुद्भिद का निर्माण निषिक्तांड (oospore) सामान्य सूत्री विभाजनो से बार-बार एक विशेष पैटर्न में विभाजित होता है तथा एक भ्रूण का निर्माण करता है। यही भ्रूण एक छोटा सा नया बीजाणुद्भिद में तैयार हो जाता है।

अनावृतबीजी पौधे (Gymnosperm plants :- gymnos = naked (नग्न); sperma= seed)- अनावृतबीजी पौधों के अंतर्गत वे पौधे आते हैं जिनमे बीज तो बनते हैं, परन्तु वे बीज नग्न रूप से पौधे पर लगे रहते हैं, अर्थात बीजाण्ड (ovules) अथवा उनसे विकसित बीज फलभित में बंद नही होते हैं। अण्डाशय का पूर्ण अभाव होता है, अतः फल का निर्माण भी नही होता |

• साइकस (Cycas), गिंगोबाइलोबा (Ginkgo biloba ) तथा सिक्यूआ (sequoia) नामक पौधों को “जीवित जीवाश्म’ कहा जाता है, क्योंकि

ये पौधे कम संख्या में पाए जाते हैं और इनके जीवाश्म भी मिलते हैं। इस समूह के सिक्यूआ जाती के पौधे वनस्पति जगत में सबसे ऊंचे होते हैं। • संसार का सबसे अधिक ऊंचाई का पौधा सिक्यूआ सम्परवाइरेंस (Sequoia sempervirens) है जो कैलिफोर्निया के रेडवुड पार्क में हैं।

अनावृतबीजी पौधे के विशिष्ट लक्षण

1. पौधे प्रायः बहुवर्षीय एवं काष्ठीय होते हैं तथा मुख्य पौधा बीजाणुद्भिद होता है।

2. ये मरुस्थलीय स्वभाव के होते हैं जिनमे रन्ध पत्ती में धंसे होते हैं तथा बाह्यत्वचा (epidermis) पर उपत्वचा (cuticle) की परत पाई जाती है।

3. सामान्यतः इनके जाइलम ऊतक में वाहिनियाँ तथा फ्लोएम ऊतक में सहकोशिकाएं (companion cell) नहीं होती है।

4. जननांग प्रायः एकलिंगी शंकु (cone) या स्ट्रोबिलस (strobilus) के रूप में होते हैं। नर शंकु अनेक सूक्ष्म बीजाणुपण (microsporophylls) तथा मादा शंकु (female cone) महाबीजाणुपर्ण (megasporophylls) से मिलकर बनते हैं।

5. सूक्ष्म बीजाणुपण पर सूक्ष्म बीजाणुधानियाँ (microsporangia) अथवा परागधानियाँ (pollen sac) प्रायः समूहों में पायी जाती है।

6. सूक्ष्म बीजाणुधानियों में पराग मात्र कोशिकाओं (pollen mother cells- 2n) के अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप बहुत से सूक्ष्म बीजाणुओं (microspore = pollen grains) का निर्माण होता है जो अंकुरण करके नर युग्मकोद्भिद बनाते हैं।

7. इसी प्रकार से प्रत्येक बीजाण्ड (ovule) के बीजाण्डकाय (nucellus) में स्थित महाबीजाणु मात्र कोशिका (megaspore mother cell) के अर्धसूत्री विभाजन से चार महाबीजाणु (megaspore) बनते हैं, जिनमे से तीन नष्ट हो जाते हैं और एक क्रियाशील महाबीजाणु के रूप में बचता है।

8. क्रियाशील महाबीजाणु के विभाजन एवं वृध्दि से मादा युग्मकोद्भिद अथवा भूणपोष बनता है।

9. परागण, वायु व्दारा होता है।

10. व्दिनिषेचन नहीं होता |

11. युग्मकोद्भिद पीढ़ी बहुत कम विकसित तथा बीजाणुदद्भिद पीढ़ी पर ही निर्भर होता है।

साइकस में पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generation in Cycas)- साइकस के पौधे के जीवन चक्र तथा जीवन इतिहास का अध्ययन करने से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह एक बीजाणुद्भिद है जो अपने जीवन चक्र को पूरा करने हेतु युग्मकोद्भिद पीढ़ी को जन्म देता है। बीजाणुद्भिद पीढ़ी एकलिंगी होती है जिसमें मादा पौधे पर लगे महाबीजाणुपर्ण पर बीजाण्ड लगे होते हैं जिनमे महाबीजाणु उत्पन्न होते हैं तथा नर पौधे पर उत्पन्न नरशंकु पर बहुत से सूक्ष्म बीजाणुपर्ण लगे रहते हैं जो सूक्ष्मबीजाणुधानियों को जन्म देते हैं।

सूक्ष्मबीजाणुधानियां असंख्य सूक्ष्मबीजाणुओं अथवा परागकणों का निर्माण करते हैं। इस प्रकार महाबीजाणु तथा सूक्ष्मबीजाणु क्रमशः मादा तथा नर पौधों पर उत्पन्न होते हैं। महाबीजाणु तथा सूक्ष्मबीजाणु युग्मकोद्भिद पीढ़ी की प्रथम कोशिकाएँ हैं। ये क्रमशः महायुग्मकोद्भिद (megagametophyte) तथा सूक्ष्मयुग्मकोद्भिद (microgametophyte ) को जन्म देता हैं। इससे मादा युग्मक स्त्रीधानी में उपस्थित के रूप में तथा नर युग्मक प्रशुक्रजन्य (spermatozoids) के रूप में उत्पन्न होते हैं। परागण तथा निषेचन के पश्चात् दोनों रचनाओं के संयोजन के फलस्वरूप निषिक्तांड (oospore) बन जाता है जो बीजाणुद्भिद पीढ़ी की प्रथम कोशिका है, अर्थात इस प्रकार फिर बीजाणुद्भिद पीढ़ी प्रारम्भ हो जाती है।

इस प्रकार बीजाणुद्भिद पीढ़ी और युग्मकोद्भिद पीढ़ी एक-दूसरे के बाद क्रमशः आती रहती है और यह चक्र चलता रहता है। इसको ही पीढ़ी एकांतरण कहते हैं।