कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 5,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 5, part -2,FULL HAND WRITTEN NOTES

कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 5,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 5, part -2,FULL HAND WRITTEN NOTES

3. वायवीय रूपान्तरण (Aerial modification)

 

(i) स्तम्भीय तंतु (Stem tendril)- इसमें कक्षस्थ कलिकाएँ शाखा न बनाकर तंतु बनाती है और पौधे को सहारा देने का कार्य करती हैं, जैसे- अंगूर (grape), कद्दू कुल के पौधे (cucurbits)

(ii) पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade )- इस प्रकार के रूपान्तरण में तना मांसल पत्ती के रूप में रूपान्तरण होकर चपटा, हरा हो जाता है और पत्ती के समान कार्य करने लगता है; जैसे- नागफनी (Opuntia), यूफोर्निया (Euphorbia) आदि |

(iii) पर्णाभ पर्व (Cladode)- जब कक्षस्थ कलिका के स्थान पर निश्चित वृध्दि वाली हरी पत्ती के समान रचना जैसी शाखा पायी जाती है। और यह केवल एक पर्व की बनी होती है, तब इसे पर्णाभ पर्व कहते हैं। इस पर लगी पत्तियां शल्क पत्रों के समान होती है जैसे एस्पेरेगस, रस्कस |

(iv) स्तम्भ कंटक (stem thorn)- कक्षस्थ कलिका के स्थान पर शाखित या अशाखित कांटे निकलते हैं, जैसे- करौंदा, गुलाब, कैक्टस, बबूल

पती (Leaf)- यह पौधों का महत्वपूर्ण भाग है। इसमें हरे रंग का वर्णक पर्णहरिम (Chlorophyll) पाया जाता है। इस वर्णक के कारण ही पत्तियों में प्रकाशसंश्लेषण व्दारा भोजन का निर्माण होता है। पौधे में पती का निर्माण पर्व संधियों पर होता है।

 

पतियों के प्रकार

 

1. बीजपत्रीय पत्ती (Cotyledonary leaves)- ये बीज के बीजपत्र होते हैं जो पत्ती की तरह दिखाई देते हैं। प्रायः इनमे भोजन संचित रहता है जिससे ये फूलकर मांसल हो जाती है, जैसे- सेम व चना व अरण्डी में एकबीजपत्री पौधों के बीज में केवल एक बीजपत्र (cotyledon) पाया जाता है, जिसे वरुधिका (scutellum) कहते हैं जबकि व्द्विबीजपत्री पौधों के बीज में दो बीजपत्र पाए जाते हैं।

2. सहपत्र (Bract leaves or Hypsophylls)- पुष्प अथवा पुष्पक्रम (inflorescence) के कक्ष (axil) में छोटे व हरे रंग की पत्तियां पायी जाती है जिन्हें सहपत्र कहते हैं। कुछ पौधों; जैसे- बोगेनविलिया व यूफोर्बिया में ये बड़े एवं चमकीले रंग के होते हैं। साधारणतया इनका कार्य पुष्प कलिकाओं की रक्षा करना होता है।

3. शल्कपत्र (Scale Leaves)- इस प्रकार की पत्तियां प्रायः भूमिगत तनों जैसे- प्रकंद, घनकन्द में पायी जाती है। ये प्रायः भूरे रंग की होती हैं। शल्कपत्र कलिकाओं के रक्षक आवरण का कार्य करते हैं, जैसे- अदरक में। ये पर्णहरिम की अनुपस्थिति के कारण प्रकाश संश्लेषण का कार्य नही कर पाती है।

 

4. पुष्पीय पत्र (Floral leaves) – पुष्पों में पाए जाने वाले बायदल, दलपुंज, पुमंग व जायांग सभी पतियों के ही परिवर्तित रूप हैं। इन्हें पुष्पीय पत्र कहते हैं।

5. सामान्य पत्ती (Foliage leaves)- ये हरे रंग की सामान्य पत्तियाँ होती हैं जो वायवीय तनों व शाखाओं पर लगी रहती हैं। ये अधिक चपटी होती हैं। इनका प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण श्वसन व वाष्पोत्सर्जन कियाओं में भाग लेना है।

 

एक सामान्य पत्ती के भाग- एम सामान्य पत्ती में निम्नलिखित तीन भाग पाए जाते हैं

 

1. पर्णाधार (leafbase or Hypopodium)

 

2. पर्णवृंत (Petiole or Mesopodium)

 

3. पर्णफलक (Lamina or Epipodium)

 

1. पर्णाधार- यह पत्ती का वह भाग है जो तने या शाखा से जुड़ा रहता है। यह निम्न प्रकार का होता है

(i) पर्णवृंततल्प (Pulvinus)- इस प्रकार का पर्णाधार कुछ फूला होता है। यह तने से मजबूती से नहीं चिपका होता है जिसके कारण इस प्रकार के पर्णाधार वाली पत्ती को आसानी से तोडा जा सकता है; जैसे- आम, पीपल, बरगद आदि में।

(ii) आच्छादक (Sheathing)- एकबीजपत्री पौधों जैसे मक्का, गन्ना, केला आदि में पर्णाधार चौड़ा व चपटा होकर तने की पर्वसंधि के कुछ भाग को ढके रहता है।

(केले में विभिन्न पतियों के आच्छादक एक-दूसरे से लिपटकर तने सदृश एवं हरे रंग की रचना बनाते हैं जिसे आभासी तना (false stem) कहते हैं, जबकि केले का वास्तविक तना भूमिगत होता है।)

(iii) अधोवर्धी (Decurrent)- कुछ पौधों में पर्णाधार के साथ-साथ पर्णवृंत भी चौड़ा, चपटा व सपक्ष (winged) हो जाता है और पर्व संधि के ऊपर के कुछ भाग को घेरे रहता है, जैसे- सिम्फ़ाइटम आदि में।

2. पर्णवृन्त (Petiole)- यह पत्ती का डंठल होता है। पर्णवृन्त-रहित पत्ती को अवृंत (Sessile) पत्ती कहते हैं, जैसे- गेहूँ, धान, मदार जबकि पर्णवृंत युक्त पत्ती को सवृन्त (Petiolate) पत्ती कहते हैं, जैसे- पीपल, आम, अमरूद, कपास, गुड़हल आदि|

पतियों में पर्णवृन्त निम्न रूपों में पाया जाता है

(i) सपक्ष पर्णवृंत (winged petiole )- संयुक्त पतियों में इस प्रकार का पर्णवृत पाया जाता है। इसमें पर्णवृंत चपटा होकर पत्ती की तरह हो जाता है तथा पत्ती के लगभग सभी कार्य करता है, जैसे- नींबू, संतरा, देशी मटर आदि में।

(ii) पर्णाभवृन्त (Phyllode)- कुछ पौधों की संयुक्त पत्तीयों में पर्णवृन्त पती सदृश रचना में परिवर्तित हो जाता है और भोजन निर्माण का कार्य करता है, जैसे- ऑस्ट्रेलियन बबूल आदि ।

(iii) प्लवन या केन्द्रीय पर्णवृन्त (Spongy petiole )- कुछ जलीय पौधों जैसे जलकुम्भी (Eichornia), सिंघाड़ा (trapa), आदि में पर्णवृन्त फूलकर सपंजी हो जाते हैं तथा वायु से भरा होता है, जिसके कारण पौधा आसानी से तैर सकता है।

3. पर्णफलक (Lamina)- यह पत्ती का चौड़ा हरा फैला हुआ भाग होता है। इसके मध्य में पर्णवृन्त से लेकर शीर्ष तक एक मोटी धारा होती है जिसे मध्य शिरा (mid vein) कहते हैं।

शिराविन्यास (Venation)- एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों में शिराओं (veins) के फैलने की व्यवस्था अलग-अलग प्रकार की होती है। पतियों में पाये जाने वाले शिराओं के इस क्रम को शिराविन्यास कहते हैं। शिराविन्यास दो प्रकार का होता है जालिकावत व समान्तर |

1. जालिकावत शिराविन्यास (Reticulate venetion)- इसमें शिराएँ ( veins) पर्णफलक के अंदर एक जाल की तरह रचना बनाती हैं। इस प्रकार का शिराविन्यास अधिकांश विद्वबीजपत्री पौधों की पत्तियों में पाया जाता है। अपवादस्वरूप कुछ एकबीजपत्री पौधों, जैसे- स्माइलेक्स व रतालू की पत्तियों में भी इस प्रकार का शिराविन्यास पाया जाता है। मध्य शिरा की संख्या के आधार पर यह दो प्रकार का होता है

(i) पक्षवत या एकशिरीय (Pinnate or Unicostate)- इसमें पर्णफलक के बीच में एक मध्य शिरा होती ही जिसे अनेक पार्श्व शाखाएं निकलती हैं। इनसे फिर छोटी-छोटी शाखाएं अनेक दिशाओं में निकलकर एक जाल-स बनाती हैं; जैसे- आम, अमरूद, पीपल, बरगद आदि में|

(ii) पाणिवत या बहुशिरीय (Palmate or Multicostate)- इसमें कई मध्य शिराएँ पायी जाती हैं। इसके निम्नलिखित दो रूप पाए जाते हैं

(a) अभिसारी रूप (convergent type)- इसमें सभी मध्य शिराएँ फलक के आधार से फ़ैलकर शीर्ष की ओर पंहुचकर एकत्रित हो जाती है, जैसे- बेर, दालचीनी, तेजपत्ता, कपूर आदि में |

(b) अपसारी रूप (Divergent type)- इसमें सभी मध्य शिराएँ आधार से निकलकर अलग-अलग दिशाओं में फैल जाती है, जैसे खीरा, ककड़ी, पपीता, रेंडी आदि में। कद्दू,

2. संयुक्त पती (compound leaf)- इसमें पर्णफलक का कटान मध्य शिरा या पर्णवृन्त तक पंहुच जाता है जिसके कारण पर्णफलक छोटे छोटे भागों में बंट जाता है जिन्हें पर्णक (leaflets) कहते हैं। कटाव की दिशा के आधार पर शिराविन्यास की भांति संयुक्त पत्तियां भी दो प्रकार की होती हैं

(i) पक्षवत संयुक्त पत्ती (pinnate compound leaf)- इस प्रकार की संयुक्त पतियों में पर्णफलक का कटान मध्य शिरा (जिसे रेचिस ) भी कहते हैं की ओर होता है। रेचिस के विभाजन के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं

(a) एकपक्षवत (Unipinnate)- इसमें पर्णक सीधे रेचिस पर ही दोनों ओर लगे रहते हैं। जैसे- इमली, अमलतास, महोगनी, गुलाब, नीम, आदि में।

(b) व्दिपक्षवत (Bipinnate )- इसमें रेचिस विभाजित होकर अपने दोनों तरफ व्दितीयक अक्ष बनाता है जिन पर पर्णक लगे रहते हैं जैसे बबूल, छुई-मुई में|

(c) त्रिपक्षवत (Tripinnate)- इसमें व्दितीयक अक्ष भी विभक्त होकर तृतीयक अक्ष पैदा करता है, जैसे- सहजन (Moringa) में|

(d) बहुपक्षवत (Decompound)- इसमें रेचिस तीन से अधिक बार विभक्त होकर छोटी-छोटी अक्ष बनाता है जिन पर पर्णक (leaflets) लगे रहते हैं, जैसे- गाजर, धनिया व सौंफ में|