कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 3 ,भाग -1,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 3,part-1, FULL HAND WRITTEN NOTES

 


अध्याय 3

वनस्पति जगत (plant kingdom)

 

जगत पादप (Kingdom Plantae)- इसके अंतर्गत निम्न पादप समूह रखे गए हैं

1. शैवाल (Algae or Thallophytes )

2. ब्रायोफाइट (Bryophytes )

3. टेरिडोफाइट (Pteridophytes)

4. अनावृतबीजी (Gymnosperms)

5. आवृतबीजी (Angiosperms)

शैवाल (Algae or Thallophytes ) – शैवाल क्लोरोफिल युक्त, सरल, संवहन ऊतक रहित, स्वपोषी थैलोफाइट हैं जिनमे वास्तविक जड़ें, तना
व पत्तियां नहीं पायी जाती हैं। शैवालों का अध्ययन एल्गोलॉजी (Algology) अथवा फाइकोलॉजी (Phycology) में करते हैं।

शैवालों के विशिष्ट लक्षण

1. शैवालों में लैंगिक जनन के बाद भ्रूण ( embryo) का निर्माण नहीं होता है।

2. शैवाल का शरीर थैलस सदृश होता है अर्थात यह जड़, तना तथा पतियों में विभेदित नहीं होता है।

3. इनमे क्लोरोफिल पाया जाता है।

4. युग्मकोद्भिद ( gametophytic) तथा बीजाणुद्भिद (sporophytic) पीढ़ियाँ स्वतन्त्र होती हैं, अर्थात एक-दूसरे पर आधारित नही होती हैं।

5. जीवन चक्र में युग्मकोद्भिद अवस्था प्रमुख (prominent) होती है।

6. अधिकाँश शैवाल जलीय (अलवणीय जल तथा समुद्री जल दोनों) होते हैं।

7. शैवाल आत्मपोषी (autotrophic) होते हिं। इनमें क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया व्दारा स्वयं अपने भोजन
निर्माण की सामर्थ्य होती है।

8. कुछ शैवाल परजीवी होते हैं. जैसे- सीफेल्यूरोस जो कि चाय, कहवा तथा मेग्नोलिया की पत्तियों में लाल किट्ट (red rust) रोग उत्पन्न

करता है।

शैवालों का वासस्थान (Habitat of algae)- शैवालों के वासस्थानों की विभिन्न स्थितियाँ निम्नवत हैं

1. ताजे जल में डायटम्स (Diatms), स्पाइरोगाइरा (Spirogyra), वोल्वोक्स (Volvox), क्लोरेला (Chlorella) कारा (Chara) रिवुलेरिया
(Rivularia)|

2. समुद्री जल में सारगासम (Sargassum), लैमिनेरिया (Laminaria), ग्रेसिलेरिया (इन्हें sea weeds भी कहा जाता है), जेलिडियम |

3. गर्म जल के झरनों में आसिलेटोरिया
(Oscillatoria) 70-800 C
4. Protoderma एपीजोइक (epizoic ) शैवाल कछुओं की पीठ पर उगता है।

5. Cladophora एपीजोइक (epizoic ) शैवाल घोंघे के ऊपर पाया जाता है।

6. जूक्लोरेला (Zoochlorella) endozoic algae हाइड्रा के भीतर पाया जाता है।

7. आसिलेटोरिया तथा साइमनसिएला (Simonsiella) मनुष्य तथा अन्य जंतुओं की आंत में पाया जाता है।

8. हिमेटोकोकस निवेलिस (Haematococcus nivalis) के कारण एल्पाइन व आर्कटिक भाग पर जमी बर्फ लाल दिखाई देती है, इसे रेड

स्नो (red snow) कहते हैं।

9. ट्राइकोडेस्मियम ऐरिथ्रियम (Trichodesmium erythrium) नामक नीली-हरी शैवाल लाल सागर में ऊपर तैरती रहती है तथा इसे लाल
रंग प्रदान करती है। इसी कारण इसे लाल सागर कहते हैं।

शैवालों की संरचना- ये अनेक प्रकार के आकार एवं परिमाण के हो सकते हैं जिनके कुछ उदाहरण निम्न हैं

(a) चल (motile)- इन शैवालों में कशाभ (flagella) के व्दारा गति होती है; जैसे क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas )

(b) अचल (Non-motile)- इनमे कशाभ की अनुपस्थिति के कारण गति नहीं होती है; जैसे क्लोरेला ( chlorella) डायटम्स |

2. बहुकोशिकीय (Multicellular)- ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(a) मण्डलीय (Colonial)- इन शैवालों में अनेक कोशाएं समूह के रूप में व्यवस्थित होकर मण्डल (colony) बनाती हैं; जैसे- वोल्वोक्स
(Volvox)|

(b) सुत्रवत ( Filamentous) ये सूत्र (filament) के आकार की होती हैं; जैसे
क्लेडोफोरा (cladophora) ,यूलोथ्रिक्स (Ulothrix ), स्पाइरोगाइरा (spirogyra),

शैवालों में जनन (reproduction in algae)- शैवालों में जनन मुख्यतः निम्नलिखित तीन विधियों से होता है

1. वर्धी या कायिक जनन (Vegetative reproduction)

2. अलैंगिक या अलिंगी जनन (Asexual reproduction)

3. लैंगिक या लिंगी जनन (Sexual reproduction)

1. वर्धी या कायिक जनन- शैवालों में जनन की यह एक साधारण विधि है। इसमें पौधा छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा बाद में एक नए पौधे को जन्म देता है। इस विधि को विखंडन (fragmentation) कहते हैं।

2. अलैंगिक या अलिंगी जनन (Asexual reproduction)- यह प्रायः निम्नलिखित विधियों व्दारा होता है

(i) चलबीजाणु व्दारा (By Zoospores)- इस प्रकार का अलैंगिक जनन अनुकूल वातावरण में व्दिकशाभिकीय (biflagellated) या चतुर्कशाभिकीय (quadriflagellated) जैसे यूलोथ्रिक्स अथवा बहुपक्ष्माभिकीय (multiciliated) जैसे- ऊडोगोनियम में चलबीजाणु व्दारा होता है। चलबीजाणुओं का निर्माण चलबीजाणुधानी (Zoosporangium) में होता है। मात्र कोशिका के फटने पर चलबीजाणु बाहर निकलकर नए पौधों को जन्म देता है।

(ii) अचलबीजाणुओं व्दारा (By Aplanospore)- प्रतिकूल परिस्थिति में कोशिकाओं का जीवद्रव्य कोशिका भिति से अलग होकर

अचलबीजाणु का निर्माण करता है। इनमे कशाभ (flagella) नहीं होता है। इनकी भिति पतली होती है और अनुकूल परिस्थितियों में प्रत्येक अचलबीजाणु एक नए पौधे को जन्म देता है; जैसे- क्लोरेला (Chlorella)| (iii) ऐंडौस्पोर व्दारा (By Endospore)- बहुत सी नीली-हरी शैवाल में मात्र कोशिकाओं के अन्दर पतली भिति वाले बहुत से बीजाणु बन

जाते हैं, जिन्हें ऐंडोस्पोर्स (अन्तः बीजाणु) कहते हैं। ये अनुकूल परिस्थितियों में नए पौधे को जन्म देते हैं।

3. लैंगिक जनन (sexual reproduction)- लैंगिक जनन शैवालों में विशेष प्रकार के युग्मकों के संयोजन व्दारा होता है। युग्मकों का निर्माण, युग्मकधानी (gametangia) में होता है। युग्मकों के व्यवहार, रचना एवं प्रकृति के आधार पर ‘लिंगी जनन’ को निम्नलिखित भागों

में विभक्त किया जाता है

(i) समयुग्मक (isogamous type)

(ii) विषमयुग्मक (Anisogamous type)

(iii) अण्डयुग्मकी (Oogamous type)

(i) समयुग्मक (isogamous type)- कुछ शैवालों में युग्मक बाह्य आकृति एवं परिमाण में समान होते हैं। ऐसे युग्मकों को समयुग्मक कहते हैं। युग्मक कशाभिकीय हो सकते हैं, जैसे- क्लेमाइडोमोनास तथा यूलोथ्रिक्स अथवा अकशाभिकीय, जैसे- स्पाइरोगाइरा में |

(ii) विषमयुग्मकी (Anisogamous type)- कुछ शैवालों में युग्मक बाह्य आकृति में तो समान होते हैं किन्तु कार्य, व्यवहार एवं परिमाण में भिन्न होते हैं। इनमे एक युग्मक बड़ा होता है जिसे दीर्घ युग्मक कहते हैं और वह निष्क्रिय होता है। दूसरा युग्मक छोटा तथा सक्रिय होता है जिसे लघुयुग्मक कहते हैं। दोनों युग्मकों में कशाभिकाएं होती है। दोनों युग्मकों के संयोजन से जो युग्माणु बनता है, वह बाद में अर्धसूत्री विभाजन करके नए पौधों को जन्म देता है, जैसे- क्लेमाइडोमोनास में |

(iii) अण्डयुग्मकी (Oogamous type)- इनमे नर युग्मक छोटा तथा व्दिकशाभिकीय होता है, जबकि मादा युग्मक बड़ा, निष्क्रिय तथा अकशाभिकीय होता है। नर तथा मादा युग्मक संयोजन के बाद युग्मनज का निर्माण करते है, जैसे- क्लेमाइडोमोनास, कारा तथा ऊडोगोनियम में बाद में युग्मनज अर्धसूत्री विभाजन के बाद नए पौधे को जन्म देता है।
Type of Sexual reproduction in algae

शैवालों का आर्थिक महत्व

1. शैवाल खाद्य के रूप में

(i) शैवालों में कार्बोहाइड्रेट्स, अकार्बनिक पदार्थ तथा विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। विटामिन A, C, D और E इनमें मुख्य रूप से

पाए जाते हैं।

(ii) लेमिनेरिया नामक शैवाल से आयोडीन उत्पन्न होता हैं।

(iii) अल्वा (Ulva) को प्रायः समुद्री सलाद कहते हैं।

(iv) क्लोरेला में प्रोटीन्स एवं विटामिन्स की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। एक अन्य शैवाल स्पाइरुलिना में प्रोटीन्स की मात्रा सर्वाधिक होती है।