कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 4,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 4, part -4,FULL HAND WRITTEN NOTES

 

कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 4,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 4, part -4,FULL HAND WRITTEN NOTES

उपसंघ वर्टीब्रेटा को निम्न दो समूहों में बाँटा गया है-

[A] समूह एग्नेथा

[B] समूह ग्नैथोस्टोमेटा

[A] समूह- एग्नेथा (Group- Agnatha)- इस समूह के प्राणियों में नोटोकॉर्ड आजीवन स्थाई रहता है। इनमे वास्तविक जबड़े एवं युग्मित

पंख अनुपस्थित होते हैं| जनन वाहिनियाँ भी नहीं पायी जाती हैं। इसका एक वर्ग साइक्लोस्टोमेटा है

वर्ग साइक्लोस्टोमेटा (Class- Cyclostomata)- साइक्लोस्टोमेटा वर्ग के सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं। इनका शरीर लम्बा होता है, जिसमें श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोमछिद्र होते हैं। इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं

1. साइक्लोस्टोम में बिना जबड़ों का चूषक तथा वृत्ताकार मुख होता है। इनके शरीर में शल्क तथा युग्मित पंखो का अभाव होता है।

2. कपाल तथा मेरुदण्ड उपास्थिल होता है।

3. परिसंचरण तन्त्र बंद प्रकार का होता है।

4. साइक्लोस्टोम समुद्री होते हैं, किन्तु जनन के लिए अलवणीय जल में प्रवास करते हैं। जनन के कुछ दिन के बाद वे मर जाते हैं। इनके लार्वा कायांतरण (metamorphosis) के बाद पुनः समुद्र में लौट जाते हैं।

5. त्वचा चिकनी होती हैं। त्वचा पर शल्क (scales) का अभाव होता है।

6. इनमे चूषक के समान मुख होता है तथा ये परजीवी जीवन व्यतीत करते हैं।

7. इनके हृदय में दो कोष्ठ (two chambers) होते हैं तथा रुधिर परिसंचरण तन्त्र बंद प्रकार का पाया जाता है।

 

उदारहण- लैम्प्रे (Lamprey, Petromyzon), हैगफिश (Hag fish, myxine) |

[B] समूह- ग्नैथोस्टोमेटा (Group- Gnathostomata)- ये विकसित कशेरुकी हैं, जिनमे नोटोकॉर्ड वयस्क में कशेरुकदण्ड में परिवर्तित हो जाता है। मुख वास्तविक जबड़ों से घिरा रहता है। गमन जोड़ीदार पंख या पादों के व्दारा होता है और जंतु एकलिंगी होते हैं।

 

• समूह ग्नैथोस्टोमेटा को निम्न दो महावर्गों में बाँटा गया है

 

1] महावर्ग पिसीज (Superclass- Pisces)

 

[I] महावर्ग टेट्रापोडा (Superclass Tetrapoda)

 

[I] महावर्ग पिसीज (Superclass- Pisces)- इस महावर्ग में वास्तविक मछलियाँ आती हैं। इनमें तैरने के लिए जोड़ीदार पखने (fins) पाए जाते हैं। श्वसन क्लोमो व्दारा होता है। इनके हृदय में केवल दो कक्ष (two chambers) होते हैं। त्वचा प्रायः शल्कों से ढँकी रहती है। इस महावर्ग जे अंतर्गत केवल दो जीवित वर्ग आते हैं

 

(1) वर्ग- कोंड्रिक्थीज

 

(2) वर्ग- ओस्टिक्थीज

 

(1) वर्ग- कॉड्रिक्थीज (Class Chondrichthyes)- ये धारारेखीय शरीर वाली समुद्री मछलियाँ हैं। इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं

 

1. ये समुद्र में मिलने वाली मछलियाँ हैं जिनका अन्तःकंकाल उपास्थि (cartilaginous endoskeleton) का बना होता है।

2. नोटोकॉर्ड सम्पूर्ण जीवनकाल में पाया जाता है।

3. शरीर छोटे-छोटे शल्कों से ढंका रहता है जिन्हें दंताभ शल्क (placoid scales) कहते हैं।

4. दो जोड़े अंश पख और एक पृष्ठीय एक अधरीय तथा एक पुच्छीय पख (caudal fin) पाए जाते हैं।

5. क्लोमछिद्र अलग-अलग होता है एवं इसके ऊपर आपरकुलम (operculum) नहीं होता है।

6. दंताभ शल्क रूपांतरित होकर दन्त का निर्माण करता है जो जबड़ों के पिछले भाग की ओर जाती है।

7. इसमें वाताशय (air bladder) अनुपस्थित है।

8. हृदय में दो भाग हैं- एक आलिन्द और एक निलय

9. इनमे से कुछ में विद्युत् अंग (electric organs) होते हैं (जैसे- टोरपीडो) तथा कुछ में विष दंश (poison sting) (जैसे- ट्राइगोन) होते हैं।

10. यह अपने शरीर का ताप नियन्त्रण नहीं कर सकता है, अर्थात यह असमतापी (poikilothermous) जंतु हैं।

11. नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं।

12. नर के पेल्विक फिन में क्लासपर रहता है।

13. इसमें अन्तः निषेचन होता है एवं किसी-किसी में विकास सीधा होता है।

 

उदाहरण- स्कोलियोडोन, इलेक्ट्रिक रे, प्रीस्टिस |

(2) वर्ग- ओस्टिक्थीज (Class- Osteichthyes) – इस वर्ग के जीवों का अन्तःकंकाल अस्थि अथवा हड्डी का बना होता है। इस वर्ग की

मछलियाँ लवणीय तथा अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाई जाती हैं। इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं

1. इनका मुख जबड़ों से घिरा रहता है।

2. शरीर पार्श्व सतह पर चपटा होता है तथा त्वचा चक्रभ या साइक्लोइड (Cycloid) अथवा टीनोइड ( Ctenoid) शल्क ढंका रहता है।

3. दो जोड़े पख पाए जाते हैं।

4. जल- क्लोम (gills) ऑपरकुलम (operculum) से ढंका रहता है।

5. नोटोकॉर्ड वयस्क में कशेरुक दण्ड ( vertebral column) व्दारा प्रतिस्थापित हो जाता है।

6. वाताशय (air bladder) पाया जाता है।

7. मलाशय तथा मूत्र जनन छिद्र अलग-अलग खुलते हैं।

8. बाह्य निषेचन होता है। नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं। शिशु अधिकांशतः माँ के शरीर से अंडे के रूप में बाहर आकर बच्चे का रूप

लेता है। अतः यह एक अण्डज (oviparous) प्राणी हैं।

 

उदाहरण- (i) सामुद्रिक मछलियाँ- एक्सोसिटस (Exocoetus, flying fish), हिप्पोकैम्पस (Hippocampus), (ii) मीठेजल की मछलियाँ

लेवियो (Rohu), कतला (Catla ), क्लेरियस (Magur) (iii) एक्वेरियम की मछलियाँ टेरोफाइलम (Pterophyllum. Angel fish)

• विभिन्न मछलियों से प्राप्त तेल जिन्हें cod liver oil या fish liver oil के नाम से जाना जाता है, इसमें विटामिन A और D भरपूर

मात्रा में पाया जाता है।

[II] महावर्ग- टेट्रापोडा (Superclass Tetrapoda)- इस महावर्ग के जंतु मुख्यतः स्थलीय हैं, किन्तु कुछ जल में भी पाए जाते हैं। गमन के लिए अंगुलीयुक्त पाद पाए जाते हैं। अन्तः कंकाल मुख्यतः अस्थियों का बना होता है। हृदय में तीन या चार वेश्म (chamber) होते हैं। इनके संवेदांग वायु में कार्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं। इस महावर्ग को निम्न चार वर्गों में बाँटा गया है

 

(1) वर्ग एम्फीबिया

 

(2) वर्ग सरीसृप

 

(3) वर्ग- एवीज (पक्षी)

 

(4) वर्ग- स्तनधारी

 

(1 – (ग्रीक एम्फी दो + बायोस जीवन ) | ये उभयचर प्राणी हैं अर्थात जल तथा स्थल दोनों

 

में रह सकते हैं। इनके लक्षण निम्न हैं

1. ये असमतापी (poikilothermous) या शीत रुधिर जंतु हैं।

2. शरीर पर शल्क (scales), बाल (hairs) या पंख (wings) नहीं होते हैं, परन्तु इनकी त्वचा अधिक ग्रंथिमय (glandular) होने के कारण काफी चिकनी होती है।

3. त्वचा बराबर कोमल और नम रहने से इनमे त्वचीय श्वसन होता है, जो इनमें जीवन के लिए अत्यावश्यक है।

4. दो जोड़े पाद होते हैं जिनमे साधारणतः पाँच अंगुलियाँ होती हैं।

5. हृदय में तीन वेश्म होते हैं- दो आलिन्द एवं एक निलय |

उप6. नेत्र पलक वाले होते हैं। बाह्य कर्ण की जगह कर्णपटल ( tympanum) पाया जाता है।

7. इनके नासाछिद्र मुखगुहा में खुलते हैं।

8. अन्तः कंकाल अस्थि के बने होते हैं।

9. लाल रुधिर कण में केन्द्रक होता है।

10. लार्वा अवस्था में श्वसन क्लोम के व्दारा और वयस्क जंतु में फेफड़े, त्वचा तथा मुखगुहा व्दारा होता है। किसी-किसी में वयस्क अवस्था में भी श्वसन क्लोम व्दारा होता है।

11. 11. आहारनाल, मूत्राशय तथा जनन पथ एक कोष्ठ में खुलते हैं जिसे अवस्कर (cloaca) कहते हैं और अवस्कर बाहर खुलता है। जनन पदार्थ तथा मल क्लोएका से ही बाहर निकलते हैं।

12. इनमे बाह्य निषेचन होता है।

13. अधिकांशतः परिवर्धन के समय एक लार्वा बनता है जिसे टैडपोल लार्वा कहते हैं।

 

उदाहरण- प्रोटीअस (Proteus), नेक्ट्यूरस (Necturus), साइरेन (Siren), सैलामेंडर ( Salamander), मेंढक (Rana tigrina), दादुर या टोड (Bufo), इक्थियोफिश (Ichthyophis), धात्री दादुर (Mildwife toad or Alytes) इत्यादि |

(2) वर्ग- सरीसृप (Class Reptilia)- सरीसृप नाम प्राणियों के रेंगने या सरकने के व्दारा गमन के कारण है (लैटिन शब्द रेपेरे अथवा रेप्टम रेंगना या सरकना) | इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं

 

1. ये सब अधिकांशतः स्थलीय प्राणी हैं लेकिन कुछ जलीय भी हैं, जिनका शरीर शुष्क युक्त त्वचा से ढका रहता है।

2. इनमे किरेटिन व्दारा निर्मित बाह्य त्वचीय शल्क (scales) या प्रशल्क (scutes) पाए जाते हैं।

3. इनमे बाह्य कर्ण नही पाए जाते हैं। कर्णपटल ( tympanum) बाह्य कान का प्रतिनिधित्व करता है।

4. दो जोड़ी पाद उपस्थित हो सकते हैं।

 

5. हृदय सामान्यतः तीन प्रकोष्ठीय (three chambered heart) होता है लेकिन मगरमच्छ में चार प्रकोष्ठीय (four chambered heart)

होता है।

6. सरीसृप असमतापी होते हैं।

7. सर्प तथा छिपकली अपनी शल्क को त्वचीय केंचुल (skin cast) के रूप में छोड़ते हैं।

8. त्वचा रुखी होती है। इसमें ग्रंथियाँ नही होती है।

9. अन्तः कंकाल अस्थि का बना होता है।

10. क्लोम विकास की प्रारम्भिक अवस्था में पाए जाते हैं। वयस्क में श्वसन क्रिया फेफड़ें व्दारा होती है।

11. लाल रुधिर कणिकाएं पाई जाती हैं।

12. आहारनाल,, जनन तथा मूत्रवाहिनियाँ क्लोएका में खुलती हैं इसलिए पृथक-पृथक गुदा एवं जनन छिद्र नहीं होते हैं।

13. साधारणतः अन्तः निषेचन होता है। ये सब अण्डज हैं तथा अंडे बड़े और चूनेदार (calcareous) कवच (shell) व्दारा आच्छादित रहते हैं।

 

14. इनमे कोई लार्वा अवस्था नही होती।

उदाहरण- कच्छप (turtle), कछुआ (tortoise), स्फेनोडोन (Sphenodon), घरेलू छिपकली (Hemidactylus), यूरोमैस्टिक्स (Uromastix), कैलोटीस (garden lizard, Calotes), नाजा (Naja), करैत (Bungarus), अजगर (Python ), मगरमच्छ ( Crocodilus), घड़ियाल( Gavialis), एलीगेटर (Alligator) इत्यादि ।