यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10

यहां पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा दसवीं हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण जीवन परिचय जोकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय के बारे में बताया है आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय यूपी बोर्ड कक्षा दसवीं हिंदी के पेपर में हर साल पूर्व परीक्षा में पूछ लिया जाता है यूपी बोर्ड कक्षा दसवीं का जीवन परिचय 3 अंकों का पूछा जाता है जो कि काफी महत्वपूर्ण होता है और आप के हिंदी के पेपर में अच्छा नंबर दिलाता है इसलिए आप इस जीवन परिचय जरूर पढ़ ले |

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय –

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ई. में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। इण्टरमीडिएट में आते ही इनकी पढ़ाई छूट गई। ये सरकारी नौकरी करने लगे, किन्तु स्वाभिमान के कारण यह नौकरी छोड़कर मिर्ज़ापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला अध्यापक हो गए। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान इन्होंने स्वाध्याय से प्राप्त किया। बाद में ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ काशी से जुड़कर इन्होंने ‘शब्द-सागर’ के सहायक सम्पादक का कार्यभार सँभाला। इन्होंने काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष का पद भी सुशोभित किया। जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य साधना करने वाले शुक्ल जी का निधन सन् 1941 में हुआ।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ –

  • निबन्ध – चिन्तामणि (दो भाग), विचारवीथी।
  • आलोचना – रसमीमांसा, त्रिवेणी (सूर, तुलसी और जायसी पर आलोचनाएँ)।
  • इतिहास – हिन्दी साहित्य का इतिहास ।
  • सम्पादन – तुलसी ग्रन्थावली, जायसी ग्रन्थावली, हिन्दी-शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार, आनन्द कादम्बिनी ।
  • काव्य रचनाएँ – ‘अभिमन्यु वध’, ‘ग्यारह वर्ष का समय|

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली –

शुक्ल जी का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। इन्होंने एक ओर अपनी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया तथा संस्कृत की तत्सम शब्दावली को प्रधानता दी। नहीं दूसरी ओर अपनी रचनाओं में उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग किया। शुक्ल जी की शैली विवेचनात्मक और संयत है। इनकी शैली निगमन शैली भी कहलाती है। शुक्ल जी की सबसे प्रमुख विशेषता यह थी कि वे कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कहने में सक्षम थे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिन्दी साहित्य में स्थान –

हिन्दी निबन्ध को नया आयाम प्रदान करने वाले शुक्ल जी हिन्दी साहित्य के आलोचक, निबन्धकार एवं युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे। इनके समकालीन हिन्दी गद्य के काल को ‘शुक्ल युग’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इनकी साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप हिन्दी को विश्व साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो सका।