कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 4,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 4, part -2,FULL HAND WRITTEN NOTES

 

 

 

कक्षा – 11 जीवविज्ञान , अध्याय – 4,NCERT CLASS 11TH ,CHAPTER – 4, part -2,FULL HAND WRITTEN NOTES.

अध्याय 4

 

प्राणी जगत (Animal kingdom)

वर्गीकरण का आधार- प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, प्रगुहा की प्रकृति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र व जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएँ पाई जाती हैं। इन समानताओं को वर्गीकरण के आधार के रूप में प्रयुक्त किया गया है।

संगठन के स्तर प्राणी जगत के सभी सदस्यों बहुकोशिक हैं, फिर भी इनमे एक ही प्रकार का कोशिकीय संगठन नहीं पाया जाता है। उदाहरण के लिए

• स्पंज एक व्दिस्तरीय (diploblastic), सबसे सरल शरीर-संगठन वाला जंतु है। इसके शरीर में कोशिकाएं बिखरे हुए समूहों में होती हैं, और कोशिकाओं के बीच कुछ श्रम विभाजन (division of labour) होता है। इस प्रकार के संगठन को कोशिकीय स्तर (cellular level) का संगठन कहा जाता है।

सीलेंट्रेटा संघ के जंतु भी व्दिस्तरीय होते हैं, किन्तु इस संघ के जंतुओं की कोशिकाओं की व्यवस्था अधिक जटिल होती है। उनमें कोशिकाएँ अपना कार्य संगठित होकर ऊतक के रूप में करती है। इसलिए इसे ऊतक स्तर (tissue level) का संगठन कहा जाता है। इससे उच्च स्तर का संगठन संघ प्लेटिहेल्मिन्थीज के सदस्यों तथा अन्य उच्च संघो के सदस्यों में पाया जाता है जिसमें ऊतक संगठित होकर अंग (organ) का निर्माण करता है और प्रत्येक अंग एक विशेष कार्य करता है। कुछ प्राणी संघों में, जैसे- एनेलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा, कार्डेटा आदि के अंग मिलकर अंगतंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते है। प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है। इस तरह की संरचना को अंगतंत्र के स्तरों का संगठन कहा जाता है। उदाहरण के लिए पाचन तंत्र भी अपूर्ण व पूर्ण होता है। अपूर्ण पाचन तंत्र में एक ही बाह्यव्दार होता है, जो मुख तथा गुदा दोनों का कार्य करता है, जैसे- प्लेटिहेल्मिन्थीज पूर्ण पाचन तन्त्र में दो बाह्य व्दार होते हैं- मुख तथा गुदा| इसी प्रकार परिसंचरण तंत्र भी दो प्रकार का होता है- खुला व बंद

1. खुला परिसंचरण तंत्र (open circulatory system)- इस तंत्र में रक्त का बहाव हृदय से सीधे असममित पात्रों में भेजा जाता है तथा कोशिका एवं ऊतक इन्ही पात्रों में डूबे रहते हैं।

 2. बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system)- इस तंत्र के रक्त का संचार हृदय से शरीर के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न व्यास की वाहिकाओं (उदाहरण धमनी, शिरा तथा केशिकाएं) के व्दारा होता है।

सममिति (Symmetry)- प्राणी को सममिति के आधार पर भी श्रेणीबध्द किया जा सकता है

असममित प्राणी (Asymmetric)- जब प्राणी को किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित नही करती | जैसे स्पंज (Sponges)

अरीय सममित (Radial symmetry)- जब किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणी के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममित कहते हैं। जैसे सिलेंट्रेटा तथा टीनोफोरा

व्दिपार्श्व सममित (bilateral symmetry)- ऐनेलिड्स, आथ्रोपोड्स, मनुष्य आदि में एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा व्दारा शरीर दो समरूप दाएँ व बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है। इसे व्दिपार्श्व सममित कहते हैं।

व्दिकोरिक तथा त्रिकोरिक संगठन (Diploblastic and triploblastic organisation)- जीन प्राणियों में कोशिकाए दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती हैं यथा बाह्य एक्टोडर्म (बाह्यत्वचा) तथा आंतरिक ऐंडोडर्म (अन्तः त्वचा) वे व्दिकोरिक कहलाते हैं, जैसे- पोरिफेरा एवं सिलेंट्रेटा| वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में एक तीसरा भ्रूणीय स्तर मीसोडर्म भी होता है, त्रिकोरिक कहलाते हैं; जैसे- प्लेटिहेल्मिन्थीज से कॉर्बेट्स तक |

प्रगुहा (Coelom) शरीर भिति तथा आहारनाल के बीच में गुहा की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति वर्गीकरण का महत्वपूर्ण आधार है। मीसोडर्म से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा या प्रगुहा (coelom) कहते हैं तथा इससे युक्त प्राणी को प्रगुही प्राणी कहते हैं; जैसे- ऐनेलिड, मोलस्क, आर्थ्रोपोड, इकाइनोडर्म, हेमीकार्डेट तथा कॉर्डेट्स | कुछ प्राणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होती, बल्कि मध्य त्वचा (मीसोडर्म) बाह्य त्वचा एवं अन्तः त्वचा के बीच बिखरी हुई थैली के रूप में पाई जाती है, उन्हें कूटगुहिक ( pseudocoelomates) कहते हैं, जैसे एस्केल्मिन्थीज| जीन प्राणियों में शरीर में शरीर गुहा नहीं पायी जाती है, उन्हें अगुहीय (acoelomate) कहते हैं; जैसे- प्लेटिहेल्मिन्थीज |

पृष्ठरज्जु (Notochord)- शलाका रुपी पृष्ठरज्जु (notochord ) मध्यत्वचा से उत्पन्न होती है जो भ्रूणीय परिवर्धन एवं विकास के समय

पृष्ठ सतह में बनती है। पृष्ठरज्जु युक्त प्राणियों को रज्जुकी या कॉर्बेट ( Chordate) कहते हैं तथा पृष्ठरज्जु रहित प्राणी को अरज्जुकी या

नॉन कॉर्बेट (Non-chordate) कहते हैं।

प्राणियों का वर्गीकरण

खंडीभवन (Segmentation)- कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आंतरिक दोनों ओर श्रेणीबध्द खंडो में विभाजित रहता है, जिनमे कुछेक अंगों की क्रमिक पुनरावृत्ति होती है। इस प्रक्रिया को खंडीभवन कहते हैं। उदाहरण के लिए केंचुए में शरीर का विखंडी खंडीभवन (metameric segmentation) होता है और यह स्थिति विखंडावस्था (metamerism) कहलाती है।

संघ पोरिफेरा (Phylum Porifera)- इस संघ के प्राणियों को सामान्यतः स्पंज कहते हैं। इस संघ के प्राणियों के लक्षण निम्न है

1. ये सामान्यतः समुद्री (लवणीय) जल में पाए जाते हैं, इनका शरीर असममित होता है। ये सब आयबहुकोशिक प्राणी है, जिनका शरीर संगठन कोशिकीय स्तर का है।

2. इनके शरीर में ऊतक नही बनते |

3. स्पंज में जल परिवहन तथा नाल तंत्र (canal system) पाया जाता है। जल सूक्ष्म रन्ध (अर्थात छिद्र) जिसे ऑस्टिया (ostia) कहते हैं व्दारा शरीर की केन्द्रीय स्पंज गुहा (spongocoel) में प्रवेश करता है तथा बड़े रन्ध ऑस्कुलम (Osculum) व्दारा बाहर निकलता है। जल परिवहन का यह रास्ता भोजन जमा करने, श्वसन तथा अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जित करने में सहायक होता है। कोएनोसाइट (Choanocytes) या कॉलर कोशिकाएं स्पंजगुहा तथा नाल-तन्त्र (canal system) को स्तरित करती हैं।

4. पाचन कोशिकाओं में होता है। (Intracellular digestion)

5. इनके शरीर पर कंटिकाओं (spicules) तथा स्पन्जिन तंतुओं (spongin fibres ) का बना कंकाल पाया जाता है, जो शरीर को आधार प्रदान करता है।

6. स्पंज प्राणी में नर तथा मादा पृथक नही होते, वे उभयलिंगाश्रयी (hermaphrodite) होते हैं। अंडे तथा शुक्राणु दोनों एक ही जंतु व्दारा बनाए जाते हैं| उनमे अलैंगिक जनन विखंडन व्दारा तथा लैंगिक जनन जनन युग्मकों व्दारा होता है।

7. निषेचन आंतरिक (internal fertilization) तथा परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है, जिसमें वयस्क से भिन्न आकृति की लार्वा अवस्था पायी जाती है।

8. इसकी शरीरभिति में दो स्तर होते हैं- बाहरी स्तर या एक्टोडर्म (ectoderm) एवं भीतरी स्तर या एंडोडर्म (endoderm)| दोनों स्तरों के बीच जेली जैसा मेसनकाइमा (mesenchyme) होता है जिसमें सिलिका या स्पन्जिन नामक पदार्थ के बने हुए विभिन्न आकार के अनेक सूक्ष्म शंकु (spicules) पाए जाते हैं। ये जंतु के शरीर में कंकाल की रचना करते हैं।

9. इनमे आंतरिक निषेचन होता है। विकास के समय एक लार्वा बनता है जो वयस्क से भिन्न होता है।

उदाहरण- (i) साइकन (Sycon)

(ii) स्पंजिला (Spongila, मीठे पानी में पाया जाता है)

(iii) यूस्पन्जिया (Euspongia, स्नान स्पंज ‘bath sponge’)

संघ सिलेंट्रेटा या नाइडेरिया (Phylum Coelenterata or Cnidaria)- इनका नाइडेरिया नाम इनकी देश कोशिका जिसे नाइडोब्लास्ट या निमेटोब्लास्ट (Cnidoblasts or nematoblasts) कहते हैं से बना है। ये कोशिकाएँ स्पर्शकों तथा शरीर में अन्य स्थानों पर पायी जाती है। देश कोशिकाएं स्थिरक, रक्षा तथा शिकार पकड़ने में सहायक हैं।

इस संघ के प्राणियों के मुख्य लक्षण निम्न हैं

1. इनमे सभी अरीय सममित जीव होते हैं एवं अधिकांश समुद्री जंतु हैं। कुछ मीठे जल में भी पाए जाते हैं। यह ऊतक स्तर जैव व्यवस्था प्रदर्शित करते हैं।

2. इन जंतुओं का शरीरभिति में दो स्तर होते हैं एक्टोडर्म और ऍडोडर्म इसलिए इन जंतुओं को व्दिस्तरीय व्दिकोरिक ( diploblastic) कहते

हैं। दोनो स्तरों के बीच मीसोग्लिया (mesogloea) नामक एक योजक स्तर होता है जिसमें किसी भी प्रकार की कोशिका नही पायी जाती है।

3. नाइडेरिया में ऊतक स्तर का शरीर संगठन होता है।

4. इन प्राणियों में केन्द्रीय जठर संवहनी गुहा या गैस्ट्रोवैस्कुलर केविटी (gastrovascular cavity) पाई जाती है, जो अधोमुख (hypostome) पर स्थित मुख व्दारा खुलती है।

5. इनमें अन्तरकोशिक एवं अन्तःकोशिक दोनों प्रकार का पाचन होता है।

6. इनके कुछ सदस्यों (जैसे प्रवाल / कोरल) में कैल्सियम कार्बोनेट से बना कंकाल पाया जाता है।

7. इनके जीवनचक्र में पीढ़ी ऐकान्तरण या मेटाजेनेसिस पाया जाता है। इनका शरीर दो आकारों पॉलीप (polyp) तथा मेड्यूसा (Medusa) से बनता है। पॉलीप स्थावर तथा बेलनाकार होता है; जैसे हाइड्रा मेड्यूसा छत्री के आकार का तथा मुक्त प्लावी होता है; जैसे ओरेलिया या जेली फिश |

• वे नाइडेरिया जो पॉलीप तथा मेड्युसा दोनों रूप में पाए जाते हैं उनमे पीढ़ी ऐकान्तरण (metagenesis) होता है, जैसे- ओबेलिया में। पॉलीप अलैंगिक जनन के व्दारा मेड्यूसा उत्पन्न करता है तथा मेड्यूसा लैंगिक जनन के व्दारा पॉलीप उत्पन्न करता है।

8. मुख के चारों ओर लम्बे-लम्बे संस्पर्शक (tentacles) रहते हैं।

9. परिसंचरण, उत्सर्जन एवं श्वसन तन्त्र नही पाए जाते हैं।

10. संस्पर्शकों में तथा शरीर के अन्य भागों में दंशकोशिकाएँ (nematocyst) पाई जाती हैं। यह शरीर की रक्षा करता है, शिकार को पकड़ता

है एवं किसी वस्तु से चिपका रहता है।

11. तंत्रिका कोशिकाओं (nerve cells) की शाखाएं आपस में मिलकर तंत्रिकाओं का जाल बनाती हैं।

12. नेत्रबिन्दु या स्टेटोसिस्ट (statocyst) पाए जा सकते हैं।

13. ये अलिंगी प्रजनन मुकुलन व्दारा और लिंगी प्रजनन युग्मकों व्दारा करते हैं।

उदाहरण- (i) फाइसेलिया (physalia), इसे पुर्तगाल युध्द मानव (portuguese man of war) भी कहते हैं।

 

(ii) समुद्री कलम (Sea pen, Pennatula)

 

(iii) ओबेलिया (Obelia)

 

(iv) हाइड्रा (Hydra)

 

(v) फंजिया ( Fungia, यह कोरल है)

 

(vi) मीन्ड्रा (Meandra अर्थात मस्तिष्क कोरल)

 

(vii) समुद्री एनीमोन (Sea anemone)