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कक्षा 12th यूपी बोर्ड हिंदी , ये पद्यांश बहुत बार पूछे गए है
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली ।
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हें समुझाइ कछू मुसकाइ चली ।।
तुलसी तेहि औसर सोह्रै सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली ।
अनुराग- तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली ।।
(2013, 15, 17, 19, 22)
(i) प्रस्तुत पद्यांश की ससंदर्भ हिन्दी में व्याख्या कीजिए तथा काव्य-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए ।
(ii) सीताजी क्या समझ गयीं?
(iii) सीताजी का संकेतपूर्ण उत्तर किस भावना केअनुरूप है?
(iv) ‘अनुराग-तड़ाग’ का क्या अर्थ है? अनुरूप है?
उत्तर- (i) प्रसंग – इन पंक्तियों में ग्रामवधुओं के प्रश्न का उत्तर देती हुई सीताजी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ बता देती हैं। व्याख्या— ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीताजी से पूछा कि ‘ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं?’ ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीताजी उनके मनोभाव को समझ गयीं। सीताजी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया, उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने स्त्रियोचित लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय में यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौन्दर्य को एकटक देखती हुई अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगीं। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम के सरोवर में रामरूपी सूर्य का उदय हो गया हो और ग्रामवधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गयी हों।
काव्यगत सौन्दर्य- (1) सीता जी का संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा तथा ‘लब्धः नेत्र निर्वाणः’ की भावना के अनुरूप है। (2) प्रस्तुत पद में ‘नाटकीयता और काव्य’ का सुन्दर योग है। (3) भाषा – सुललित ब्रज। (4) शैली- चित्रात्मक व मुक्तक । (5) छन्द–सवैया । (6) रस – श्रृंगार । (7) अलंकार – ‘सुनि सुन्दर बैन सुधारस साने, सयानी हैं जानकी जानी भली’ में अनुप्रास, ‘अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज कली’ में रूपक, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास की छटा है। (8) गुण — माधुर्य । (9) शब्दशक्ति – व्यंजना ।
[2] मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरौ, चरौ नित नंद की धेनु मँझारन ।।
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर-धारन जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी- -कूल कदंब की डारन ।।
(2018, 22)
(i) प्रस्तुत पद्य की ससंदर्भ हिन्दी में व्याख्या कीजिए तथा काव्य-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्य में कवि ने क्या कामना प्रकट की है?
(iii) ‘पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर- धारन।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(iv) इस पद्य में ‘कालिंदी-कूल’ तथा ‘पाहन’ क्या हैं?
उत्तर- (i) सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य रसखान कवि द्वारा रचित ‘सुजान-रसखान’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ‘सवैये’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग — इस पद्य में रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त किया है और अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्म भूमि (ब्रज) में जन्म लेने एवं उनके समीप ही रहने की कामना की है।
व्याख्या-रसखान कवि कहते हैं कि हे भगवान्! मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म प्राप्त करूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वालों के मध्य निवास करूँ । यदि मैं पशु योनि में जन्म ग्रहण करूँ, जिसमें मेरा कोई वश नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नन्द जी की गायों के बीच विचरण करता रहूँ । यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे आपने इन्द्र का घमण्ड चूर करने के लिए और जलमग्न होने से गोकुल ग्राम की रक्षा करने के लिए अपनी अँगुली पर छाते के समान उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी योनि में भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम्ब वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करूं।
काव्यगत सौन्दर्य (1) रसखान कवि की कृष्ण के प्रति असीम भक्ति को प्रदर्शितगया है। उनकी भक्ति इतनी उत्कट है कि वह अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण के समीप ही रहना चाहते हैं। (2) भाषा-ब्रज । (3) शैली — मुक्तक । (4) रस- शान्त एवं (5) छन्द — सवैया । (6) अलंकार – ‘कालिंदी-कूल कदंब की डारन’ में अनुप्रास। (7) गुण- प्रसाद ।
(ii) प्रस्तुत पद्य में कवि ने श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त करने की तीव्र कामना प्रकट की है।