यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

इस पोस्ट में मैंने यूपी बोर्ड का महादेवी वर्मा का जीवन परिचय बताया है महादेवी वर्मा का जीवन परिचय यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी के पेपर में हर साल पूछ लिया जाता है यह जीवन परिचय 5 अंकों का आप के हिंदी के पेपर में पूछा जाता है इसलिए आप इस कवित्री का जीवन परिचय को जरूर से जरूर तैयार कर लें क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण परिचय और हर वर्ष यूपी बोर्ड परीक्षा हिंदी के पेपर में पूछे जाने वाला जीवन परिचय है |

यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड कक्षा 12 में हिंदी महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

जीवन परिच महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित शिक्षित कायस्थ में वर्ष 1907 में हुआ था। इनकी माता हेमरानी हिन्दी व संस्कृत की ज्ञाता तथा साधारण कवयित्री थी। नाना व माता के गुणों का प्रभाव ही महादेवी जी पर परिवार पड़ा। नौ वर्ष की छोटी आयु में ही विवाह हो जाने के बावजूद इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। महादेवी वर्मा का दाम्पत्य जीवन सफल नहीं रहा। विवाह के बाद उन्होंने अपनी परीक्षाएं सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कीं। उन्होंने घर पर ही चित्रकला एवं संगीत की शिक्षा अर्जित की। इनकी उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन भी किया। इन्होंने शिक्षा समाप्ति के बाद वर्ष 1933 से प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इनकी काव्यात्मक प्रतिभा के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सेकसरिया’ एवं ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1983 में ‘भारत-भारती’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘ (‘यामा’ नामक कृति पर) द्वारा सम्मानित किया गया।
भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान से सम्मानित इस महान् लेखिका का स्वर्गवास 11 सितम्बर, 1987 को हो गया।

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

छायावाद की प्रमुख प्रतिनिधि महादेवी वर्मा का नारी के प्रति विशेष दृष्टिकोण एवं भावुकता होने के कारण उनके काव्य में रहस्यवाद, वेदना भाव, आलौकिक प्रेम आदि की अभिव्यक्ति हुई है। महादेवी वर्मा की ‘चाँद’ पत्रिका में रचनाओं के प्रकाशन के पश्चात् उन्हें विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

महादेवी वर्मा की प्रमुख कृतियाँ

इनका प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह ‘नीहार’ है। ‘रश्मि’ संग्रह में आत्मा-परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित गीत संकलित हैं। ‘नीरजा’ में प्रकृति प्रधान गीत संकलित है। ‘सान्ध्यगीत’ के गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण है। ‘दीपशिखा’ में रहस्यभावना प्रधान गीतों को संकलित किया गया है। इसके अतिरिक्त ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ आदि इनकी गद्य रचनाएँ हैं। ‘यामा’ में इनके विशिष्ट गीतों का संग्रह प्रकाशित हुआ है।

महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष

  • अलौकिक प्रेम का चित्रण महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण काव्य में अलौकिक ब्रह्म के प्रति प्रेम का चित्रण हुआ है। वही प्रेम आगे चलकर इनकी साधना बन गया। इस अलौकिक ब्रह्म के विषय में कभी इनके मन में मिलन की प्रबल भावना जाग्रत हुई है, तो कभी रहस्यमयी प्रबल जिज्ञासा प्रकट हुई है।
  • रहस्यात्मकता आत्मा के परमात्मा से मिलन के लिए बेचैनी इनके काव्य में प्रकट हुई है। आत्मा से परमात्मा के मिलन के सभी सोपानों का वर्णन महादेवी वर्मा के काव्य में मिलता है। मनुष्य का प्रकृति से तादात्म्य, प्रकृति पर चेतनता का आरोप, प्रकृति में रहस्यों की अनुभूति, असीम सत्ता और उसके प्रति समर्पण तथा सार्वभौमिक करुणा आदि विशेषताएँ इनके रहस्यवाद से जुड़ी है। इन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोपण करके उससे आत्मीयता की।
  • वेदना भाव महादेवी वर्मा के काव्य में मौजूद वेदना में साधना, संकल्प एवं लोक कल्याण की भावना निहित है। वेदना इन्हें अत्यन्त प्रिय है। इनकी इच्छा है कि इनके जीवन में सदैव अतृप्ति बनी रहे। इन्होंने कहा भी है-” में नीर भरी दुःख की बदली। इन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की संज्ञा भी दी गई है।
  • प्रकृति का मानवीकरण महादेवी के काव्य में प्रकृति आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशक, पूर्वपीठिका आदि रूपों में प्रस्तुत हुई है। इन्होंने प्रकृति में विराट की छाया देखी है। छायावादी कवियों के समान ही इन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। सुन्दर रूपकों द्वारा प्रकृति के सुन्दर चित्र खींचने में महादेवी जी की समानता कोई नहीं कर सकता।
  • रस महादेवी जी के काव्यों में श्रृंगार के दोनों पक्षों वियोग और संयोग के साथ करुण एवं शान्त रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है।

कला पक्ष

  • भाषा महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। इनकी भाषा का स्निग्ध एवं प्रांजल प्रवाह अन्यत्र देखने को नहीं मिलते हैं। कोमलकान्त पदावली ने भाषा को अपूर्व सरसता प्रदान की है।
  • शैली इनकी शैली मुक्तक गीतिकाव्य की प्रवाहमयी सुव्यवस्थित शैली है। ये शब्दों को पंक्तियों में पिरोकर कुछ ऐसे ढंग से प्रस्तुत करती हैं कि उनकी मौक्तिक आभा एवं संगीतात्मक गूंज सहज ही पाठकों को आकर्षित कर लेती है।
  • सूक्ष्म प्रतीक एवं उपमान महादेवी जी के काव्य में मौजूद प्रतीकों, रूपकों एवं उपमानों की गहराई तक पहुँचने के लिए आस्तिकता, आध्यात्मिकता एवं अद्वैत दर्शन की एक डुबकी अपेक्षित होगी, अन्यथा हम इनकी अभिव्यंजना के बाह्य रूप को तो देख पाएँगे, किन्तु इनकी सूक्ष्म आकर्षण शक्ति तक पहुँच पाना कठिन होगा।
  • लाक्षणिकता लाक्षणिकता की दृष्टि से महादेवी जी का काव्य बहुत प्रभावशाली है। इन्होंने अपने गीतों के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। कुशल चित्रकार की भाँति इन्होंने थोड़े शब्दों से ही सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए हैं।
  • छन्द एवं अलंकार महादेवी जी ने मात्रिक छन्दों में अपनी कुछ कविताएँ लिखी हैं, परन्तु सामान्यतया विविध गीत-छन्दों का प्रयोग किया है, जो इनकी मौलिक देन है। इन्होंने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके यहाँ उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विरोधाभास, विशेषण-विपर्यय आदि अलंकारों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है।

महादेवी वर्मा का हिन्दी साहित्य में स्थान

महादेवी वर्मा छायावादी युग की एक महान कवयित्री समझी जाती हैं। इनके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अद्वितीय हैं। सरस कल्पना, भावुकता एवं वेदनापूर्ण भावों को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। कल्पना के अलौकिक हिण्डोले पर बैठकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया, वह हिन्दी साहित्याकाश में ध्रुवतारे की भाँति चमकता रहेगा।