UP Board Class 12 Hindi Life Introduction of Sumitra Nandan Pant

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय

इस पोस्ट है मैंने हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण जीवन परिचय सुमित्रानंदन का बताया है जो कि आपके यूपी बोर्ड परीक्षा हिंदी के पेपर में सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय हर साल आपके बोर्ड परीक्षा में पूछा जाता है यह जीवन परिचय 5 अंकों का जीवन परिचय पूछा जाता है जो कि कवित्री पर आधारित जीवन परिचय होता है इसलिए आप इस जीवन परिचय को जरूर से जरूर तैयार कर ले |

UP Board Class 12 Hindi Life Introduction of Sumitra Nandan Pant

सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय –

सुकुमार भावनाओं के कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म हिमालय के सुरम्य प्रदेश कूमांचल (कुमाऊँ) के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, 1900 को हुआ था। हाईस्कूल में अध्ययन के लिए वे अल्मोड़ा के राजकीय हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए। यही पर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन पन्त रखा। इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद गाँधीजी के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। फिर स्वाध्याय से ही अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला साहित्य का गहन अध्ययन किया।

उपनिषद्, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर उनकी रुचि प्रारम्भ से ही थी। इलाहाबाद (प्रयाग) वापस आकर रुपाभा’ पत्रिका का प्रकाशन करने लगे। बीच में प्रसिद्ध नर्तक उदयशंकर के सम्पर्क में आए और फिर उनका परिचय अरविन्द घोष से हुआ। इनके दर्शन से प्रभावित पन्त जी ने. अनेक काव्य संकलन स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा आदि प्रकाशित किए। वर्ष 1961 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान, ‘कला एवं बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘लोकायतन’ पर सोवियत भूमि पुरस्कार तथा ‘चिदम्बरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। 28 दिसम्बर, 1977 को प्रकृति के सुकुमार कवि पन्त जी प्रकृति की गोद में ही विलीन हो गए।

सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय 

छायावादी युग के प्रतिनिधि कवि सुमित्रानन्दन पन्त ने सात वर्ष की आयु ही कविता लेखन करना प्रारम्भ कर दिया था। उनकी प्रथम रचना वर्ष 1916 में आई, उसके बाद वर्ष 1919 में उनकी काव्य के प्रति रुचि और बढ़ गई। पन्त जी के काव्य में कोमल एवं मृदुल भावों की अभिव्यक्ति होने के कारण इन्हें ‘प्रकृति का सुकुमार कवि’ कहा जाता है। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं।

सुमित्रानन्दन पन्त की प्रमुख कृतियाँ

काव्य रचनाएँ वीणा (1919), ग्रन्थि (1920), पल्लव (1926), गुंजन (1932), युगान्त (1937), युगवाणी (1938), ग्राम्या (1940), स्वर्ण-किरण (1947), युगान्तर (1948), उत्तरा (1949), चिदम्बरा (1958), कला और बूढ़ा चाँद (1959), लोकायतन आदि। गीति-नाट्य ज्योत्स्ना, रजत शिखर, अतिमा (1955) उपन्यास हार (1960) कहानी संग्रह पाँच कहानियाँ (1938)

सुमित्रानन्दन पन्त की काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष

  •  सौन्दर्य के कवि सौन्दर्य के उपासक पन्त की सौन्दर्यानुभूति के तीन मुख्य केन्द्र-प्रकृति, नारी एवं कला हैं। उनका सौन्दर्य प्रेमी मन प्रकृति को देखकर विभोर हो उठता है। बीना, अन्धि पल्लव आदि प्रारम्भिक कृतियों में प्रकृति का कोमल रूप परिलक्षित हुआ है। आगे चलकर ‘गुंजन’ आदि काव्य रचनाओं में कविवर पन्त का प्रकृति-प्रेम मांसल बन जाता है और नारी सौन्दर्य का चित्रण करने लगता है। ‘पल्लव’ एवं गुंजन’ में प्रकृति और नारी मिलकर एक हो गए हैं।
  • कल्पना के विविध रूप व्यक्तिवादी कलाकार के समान अन्तर्मुखी बनकर अपनी कल्पना को असीम गगन में खुलकर विचरण करने देते हैं। 3. रस चित्रण पन्त जी का प्रिय रस श्रृंगार है, परन्तु उनके काव्य में शान्त, अद्भुत, करुण, रौद्र आदि रसों का भी सुन्दर परिपाक हुआ है।

कला पक्ष

  • भाषा पन्त जी की भाषा चित्रात्मक है। साथ ही उसमें संगीतात्मकता के गुण भी विद्यमान हैं। उन्होंने कविता की भाषा एवं भावों में पूर्ण सामंजस्य पर बल दिया है। उनकी प्रकृति सम्बन्धी कविताओं में चित्रात्मकता अपनी चरम सीमा पर दिखाई देती है। कोमलकान्त पदावली से युक्त सहज खड़ी बोली में पद-लालित्य का गुण विद्यमान है। उन्होंने अनेक नए शब्दों का निर्माण भी किया जैसे-टलमल, रतमल आदि। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं परिमार्जित है, जिसमें एक सहज प्रवाह एवं अलंकृति देखने को मिलती है।
  • शैली पन्त जी की शैली में छायावादी काव्य-शैली की समस्त विशेषताएँ, जैसे- लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता, चित्रात्मकता, सजीव एवं मनोरम बिम्ब-विधान आदि पर्याप्त रूप से विद्यमान हैं।
  • छन्द एवं अलंकार पन्त जी ने नवीन छन्दों का प्रयोग किया। मुक्तक छन्दों का विरोध किया, क्योंकि वे उसकी अपेक्षा तुकान्त छन्दों को अधिक सक्षम मानते थे। उन्होंने छन्द के बन्धनों का विरोध किया। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति जैसे अलंकार उन्हें विशेष प्रिय थे। वे उपमाओं की लड़ी बाँधने में अत्यन्त सक्षम थे। उन्होंने मानवीकरण एवं ध्वन्यर्थ-व्यंजना जैसे पाश्चात्य अलंकारों के भी प्रयोग किए।

सुमित्रानन्दन पन्त का हिन्दी साहित्य में स्थान

सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं। पन्त जी सौन्दर्य के उपासक थे। वे युगद्रष्टा व युगस्रष्टा दोनों ही थे। वे असाधारण प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। छायावाद के युग प्रवर्तक कवि के रूप में उनकी सेवाओं को सदा याद किया जाता रहेगा।