यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय एवं मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय यूपी बोर्ड कक्षा 12

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय एवं मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय यूपी बोर्ड कक्षा 12

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय एवं मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय यूपी बोर्ड कक्षा 12

इसमें मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12 में मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय बताया है जो कि आपकी यूपी बोर्ड परीक्षा के पेपर में 5 अंकों का हर साल पूछा जाता है इसलिए आप यहां पर बताए गए मैथिलीशरण गुप्त हिंदी का जीवन परिचय जरूर पढ़ लें यह मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय आपके यूपी बोर्ड परीक्षा पेपर में पूछा जा सकता है क्योंकि यह आपके सिलेबस में दिया गया है इसलिए आप इस महत्वपूर्ण परिचय को जरूर पढ़ें |

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मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय –

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म आँती जिले के बिरदीप नामक स्थान पर 1666 ई. में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त को हिन्दी साहित्य से विशेष प्रेम था |गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पका घर पर ही परमकृत एवं हिदी का उन करने वाले गुण जी की प्रारम्भिक रचनाएँ कलकता से प्रकाशित होने वाले वैश्योंपकारक नामक एक में छपती थी। आचार्य महावीरमताद द्विवेदी जो के सम्पर्क में आने पर उनके आदेश उपदेश एवं स्नेहमा परामर्श से इनके काव्य में पर्याप्त निखार आया |

राष्ट्रीय विशेषताओं से परिपूर्ण रचनाओं का सृजन करने के कारण ही महात्मा गाँधी ने इसी राष्ट्रकवि की उपाधि दी। साकेत महाकाव्य के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने इन पद्मभूषण से सम्मानित किया। 12 दिसम्बर, 1964 को मां भारती का यह सच्चा सपूत हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गया।

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय

गुप्त जी ने खड़ीबोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाओं भारत-भारती आदि में इति वृत्तकथन की अधिकता दिखाई देती है।

मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख कृतियाँ

गुप्त जी के लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रन्थों में ‘भारत-भारती’, ‘किसान’, ‘शकुन्तला’, ‘पंचवटी’, ‘त्रिपथगा’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘नहुष’, ‘काबा और कर्बला’ आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त गुप्त जी ने ‘अनघ’, ‘तिलोत्तमा’ एवं ‘चन्द्रहास’ जैसे तीन छोटे-छोटे पद्यबद्ध रूपक भी लिखे।

मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष

  1. राष्ट्रप्रेम गुप्त जी की कविता का मुख्य स्वर है। इनकी रचनाओं में आज की समस्याओं एवं विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं। इसका एक मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करना था। इन्होंने ऐसे समय में लोगों में राष्ट्रीय चेतना का स्वर फूँका, जब हमारा देश परतन्त्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। देशवासियों में स्वदेश प्रेम जागृत करते हुए इन्होंने कहा भी है- ” जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस धार नहीं।
  2. वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।। ” 2. नारी का महत्त्व गुप्त जी का हृदय नारी के प्रति करुणा व सहानुभूति से परिपूर्ण है। इन्होंने नारी की स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए सदियों से उपेक्षित उर्मिला एवं यशोधरा जैसी नारियों के चरित्र का उदात्त चित्रण करके एक नई परम्परा का सूत्रपात किया।
  3. भारतीय संस्कृति के उन्नायक गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं, इसीलिए इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का सुन्दर वर्णन किया। इनका विश्वास था कि सुन्दर वर्तमान और स्वर्णिम भविष्य के लिए अतीत को जानना अत्यन्त आवश्यक है।
  4. प्रकृति चित्रण इनके प्रकृति चित्रण में हृदय को आकर्षित कर लेने की क्षमता एवं सरसता है। इनमें प्रकृति को आकर्षक रूप देने में अत्यधिक कुशलता है।
  5. रस योजना गुप्त जी की रचनाओं में अनेक रसों का सुन्दर समन्वय मिलता है। श्रृंगार, रौद वीभत्स, हास्य एवं शान्त रसों के प्रसंगों में गुप्त जी अत्यधिक सफल रहे हैं। साकेत में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों-संयोग एवं वियोग का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। प्रसंगानुसार इनके काव्य में ऐसे स्थल भी हैं, जहाँ पात्र अपनी गम्भीरता को भूलकर हास्यमय हो गए हैं।

कला पक्ष

  1.  भाषा खड़ीबोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य, भावों में तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सौन्दर्य अद्भुत है। इन्होंने ब्रजभाषा के स्थान पर सरल, शुद्ध, परिष्कृत खड़ीबोली में काव्य सृर्जन करके उसे काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गम्भीर विषयों को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में ये सिद्धहस्त थे। भाषा में लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों के प्रयोग से जीवन्तता आ गई है।
  2. शैली गुप्त जी ने अपने समय में प्रचलित लगभग सभी शैलियों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। ये मूलतः प्रबन्धकार थे, लेकिन प्रबन्ध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीति नाट्य, नाटक आदि क्षेत्रों में भी इन्होंने अनेक सफल रचनाएँ की हैं। इनकी रचना ‘पत्रावली’ पत्र शैली में रचित नूतन काव्य-प्रणाली का नमूना है। इनकी शैलियों में गेयता, सहज प्रवाहमयता, सरसता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है।
  3. छन्द एवं अलंकार गुप्त जी ने सभी प्रचलित छन्दों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। इन्होंने मन्दाक्रान्ता, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बित, हरिगीतिका, बरवै आदि छन्दों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। इन्होंने तुकान्त, अतुकान्त एवं गीति तीनों प्रकार के छन्दों का समान अधिकार से प्रयोग किया है। अलंकार क्षेत्र में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, श्लेष के अतिरिक्त ध्वन्यर्थ-व्यंजना, मानवीकरण जैसे आधुनिक अलंकारों का भी प्रयोग किया। अन्त्यानुप्रासों की योजना में इनका कोई जोड़ नहीं है।