यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड हिंदी जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड हिंदी जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – यूपी बोर्ड हिंदी जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

इस पोस्ट में मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12 में जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय को बताया जो कि काफी महत्वपूर्ण जीवन परिचय है यह जीवन परिचय आपकी यूपी बोर्ड परीक्षा में 5 अंकों का हर साल हिंदी में पूछा जाता है इसलिए आप इस जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय को तैयार कर लें क्योंकि यह आपके कक्षा बारहवीं हिंदी के पेपर में पक्का पूछा जाएगा |

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय - यूपी बोर्ड हिंदी जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

छायावाद के प्रवर्तक एवं उन्नायक महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के अत्यन्त प्रतिष्ठित सुँघनी साहू के वैश्य परिवार में 1890 ई. में हुआ था। माता-पिता एवं बड़े भाई के देहावसान के कारण अल्पायु में ही प्रसाद जी को व्यवसाय एवं परिवार के समस्त उत्तरदायित्वों को वहन करना पड़ा। घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बांग्ला, उर्दू, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए इन्होंने अपने भीतर काव्य-प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक विषम परिस्थितियों को जीवटता के साथ झेलते हुए यह युगस्रष्टा साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अपूर्व रचना – सुमन अर्पित करता हुआ 14 नवम्बर, 1937 निष्प्राण हो गया।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

जयशंकर प्रसाद के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य प्रमुख विषय रहा है, साथ ही उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। प्रसाद जी सर्वतोन्मुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। प्रसाद जी ने कुल 67 रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कृतियाँ

इनकी प्रमुख काव्य कृतियों में चित्राधार, प्रेमपथिक, कानन कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी आदि शामिल हैं। चार प्रबन्धात्मक कविताएँ शेरसिंह का शस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि, प्रलय की छाया तथा अशोक की चिन्ता अत्यन्त चर्चित रहीं। नाटक चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित आदि। उपन्यास कंकाल, तितली एवं इरावती (अपूर्ण रचना) कहानी संग्रह प्रतिध्वनि, छाया, आकाशदीप, आँधी आदि।

जयशंकर प्रसाद का काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष

  • सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि प्रसाद जी के काव्य में श्रृंगार रस के संयोग एवं विप्रलम्भ, दोनों पक्षों का सफल चित्रण हुआ है। इनके नारी सौन्दर्य के चित्र स्थूलता से मुक्त आन्तरिक सौन्दर्य को प्रतिबिम्बित करते हैं-

“हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया उन्मुक्त । “

  • उपनिषदों के दार्शनिक ज्ञान के साथ बौद्ध दर्शन का समन्वित रूप भी इनके साहित्य में मिलता है।
  • रस योजना इनका मन संयोग श्रृंगार के साथ-साथ विप्रलम्भ शृंगार के चित्रण में भी खूब रमा है। इनके वियोग वर्णन में एक अवर्णनीय रिक्तता एवं अवसाद ने उमड़कर सारे परिवेश को आप्लावित कर लिया है। इनके काव्यों में शान्त एवं करुण रस का सुन्दर हुआ मिलता है।
  •  प्रकृति चित्रण इन्होंने प्रकृति के विविध रूपों का अत्यधिक हृदयग्राही चित्रण किया है। इनके यहाँ प्रकृति के रम्य चित्रों के साथ-साथ प्रलय का भीषण चित्र भी मिलता है। इनके काव्यों में प्रकृति के उद्दीपनरूप आदि के चित्र प्रचुर मात्रा में हैं।
  • मानव की अन्तः प्रकृति का चित्रण इनके काव्य में मानव मनोविज्ञान का विशेष स्थान है। मानवीय मनोवृत्तियों को उन्नत रूप देने वाली उदात्त भावनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। इसी से रहस्यवाद का परिचय मिलता है। ये अपनी रचनाओं में शक्ति संचय की प्रेरणा देते हैं।
  • नारी की महत्ता प्रसाद जी ने नारी को दया, माया, ममता, त्याग, बलिदान, सेवा, समर्पण आदि से युक्त बताकर उसे साकार श्रद्धा का रूप प्रदान किया है। उन्होंने “नारी! तुम केवल श्रद्धा हो” कहकर नारी को सम्मानित किया है।

कला पक्ष

  • भाषा प्रसाद जी की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं, परन्तु शीघ्र ही वे खड़ीबोली के क्षेत्र में आ गए। उनकी खड़ीबोली उत्तरोत्तर परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक सौन्दर्य से युक्त होती गई। अद्वितीय शब्द चयन किया गया है, जिसमें अर्थ की गम्भीरता परिलक्षित होती है। इन्होंने भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का प्रयोग किया। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता से युक्त प्रसाद जी की भाषा में अद्भुत नाद-सौन्दर्य एवं ध्वन्यात्मकता के गुण विद्यमान हैं। इन्होंने चित्रात्मक भाषा में संगीतमय चित्र अंकित किए।
  • शैली प्रबन्धकाव्य (कामायनी) एवं मुक्तक (लहर, झरना आदि) दोनों रूपों में प्रसाद जी का समान अधिकार था। इनकी रचना ‘कामायनी’ एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है।
  • अलंकार एवं छन्द सादृश्यमूलक अर्थालंकारों में इनकी वृत्ति अधिक रमी है। इन्होंने नवीन उपमानों का प्रयोग करके उन्हें नई भंगिमा प्रदान की। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि के साथ मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्यय जैसे आधुनिक अलंकारों का भी सुन्दर उपयोग किया।

विविध छन्दों का प्रयोग तथा नवीन छन्दों की उद्भावना इनकी रचनाओं में द्रष्टव्य है। आरम्भिक रचनाएँ घनाक्षरी छन्द में हैं। इन्होंने अतुकान्त छन्दों का प्रयोग अधिक किया है। ‘आँसू’ काव्य ‘सखी’ नामक मात्रिक छन्द में लिखा। इन्होंने ताटक, पादाकुलक, रूपमाला, सार, रोला आदि छन्दों का भी प्रयोग किया। इन्होंने अंग्रेजी के सॉनेट तथा बांग्ला के त्रिपदी एवं पयार जैसे छन्दों का भी सफल प्रयोग किया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रसाद जी में भावना, विचार एवं शैली तीनों की प्रौढ़ता मिलती है।

जयशंकर प्रसाद का हिन्दी साहित्य में स्थान

प्रसाद जी भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से हिन्दी के युगप्रवर्तक कवि के रूप में जाने जाते हैं। भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प आदि सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी ने युगान्तरकारी परिवर्तन किए हैं। डॉ. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान का उल्लेख करते हुए लिखा है-“वे छायावादी काव्य के जनक और पोषक होने के साथ ही, आधुनिक काव्यधारा का गौरवमय प्रतिनिधित्व करते हैं।”