Up Board Exam 2023: The most important topic of Hindi coming on February 16, UP Board Exam, make sure number 5

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा 16 फरवरी को आने वाले हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक, 5 नंबर पक्का कर लो

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा 16 फरवरी को आने वाले हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक, 5 नंबर पक्का कर लो

इस पोस्ट मैंने यूपी बोर्ड क्लास 12th हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न को बताया है यहां पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी का खण्ड काव्य पूछ लिया है जो कि आपके पेपर में हर साल पूछा जाता है और यह आपके जिले के अनुसार ही पूछा जाएगा आप जिस जिले से हैं आप उस जिले के अनुसार नीचे दिए गए खंडकाव्य को तैयार कर लीजिए और मात्र इतना पढ़ कर चले जाए आप पांच नंबर हिंदी में पक्का करके आयेंगे |

Up Board Exam 2023: The most important topic of Hindi coming on February 16, UP Board Exam, make sure number 5

यहां पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं बोर्ड परीक्षा में हर साल पूछे जाने वाले सभी महत्वपूर्ण खंडकाव्य को बताया है आप दिए गए इस खंड काव्य को पूरा अच्छे से तैयार कर ले क्योंकि यह खंडकाव्य आपकी यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी के पेपर में 5 नंबर का पूछा जाता है इसलिए आप यहां पर बताए गए खंडकाव्य को जरूर तैयार कर ले |

 

प्रश्न – ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘गाँधी जी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (मुरादाबाद, सम्भल, ज्योतिबा फूले नगर, कानपुर, कानपुर देहात, जौनपुर, फैजाबाद, अम्बेडकरनगर, एटा, ललितपुर आदि जनपदों के लिए) 

उत्तर- ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के गाँधी जी का चरित्र  – 

‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

सत्य व अहिंसा के पुजारी – गांधी जी विषम से विषम परिस्थितियों में सत्य तथा अहिंसा का त्याग नहीं करते थे। अपने इन्हीं अस्त्रों के बल पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दी तथा भारत की जनता को पराधीनता के बन्धनों से मुक्त कराया।

दृढ़ प्रतिज्ञ – गांधी ने एक बार जो प्रण कर लिया, उसका अक्षरशः पालन किया। ब्रिटिश शासन के दमन चक्र की परवाह किये बिना उन्होंने अनेक सफल सत्याग्रह संचालित किये और भारत माता के पराधीनता की बेड़ियों को काट डाला। नमक आन्दोलन का आरम्भ करें |

मानवता के प्रबल समर्थक – गाँधी के दृष्टिकोण में प्रत्येक मानव में ईश्वर का अंश विद्यमान है। उन्होंने अपना समस्त जीवन मानवता के कल्याण में ही लगा दिया। घृणा से नहीं अपितु प्रेम से जीती जा सकती है |

निर्भीक तथा साम्प्रदायिक विद्वेष के विरोधी – गाँधी निर्भीकता के साथ ब्रिटिश सरकार के दमन चक्र के समक्ष अटल रहे तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भी नोआखाली के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के प्रयासों में लगे रहे। नोआखाली की साम्प्रदायिक हिंसा ने उन्हें इतना व्यक्ति किया कि उन्होंने उसी स्थान पर आमरण अनशन का संकल्प किया।

लोकनायक – गाँधी सच्चे अर्थों में जनता के नेता थे। वे जनता को उपदेश नहीं देते थे बल्कि अपने स्व-आचरण द्वारा उन्हें कर्मों का ज्ञान दिया करते थे। 

प्रश्न – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए । (झांसी,बदायूँ, प्रतापगढ़, रामपुर, पीलीभीत, लखनऊ, बिजनौर आदि जनपदों के लिए)

उत्तर-  ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी कृत ‘सत्य की जीत नामक खण्डकाव्य महाभारत के ‘द्रौपदी चीरहरण’ पर आधारित है। कथानक दुर्योधन द्वारा पाण्डवों को द्यूतक्रीड़ा के लिए आमंत्रित करने के साथ प्रारंभ होता है । पाण्डव इस निमंत्रण को स्वीकार कर कौरवों के बिछाये छल जाल में फंस जाते हैं। कौरवों का पक्ष छल द्वारा 7 पाण्डवों को हराता चला जाता है और सर्वस्व हारने के पश्चात युधिष्ठिर पत्नी द्रौपदी को भी हार जाते हैं। इसके बाद दुर्योधन द्रौपदी के भरी सभा में अपमान के उद्देश्य से दुःशासन को आदेश देता है कि वह दासी द्रौपदी को राजसभा में लेकर आये । दुःशासन द्रौपदी को बलपूर्वक बालों घसीटते हुए सभा में लाता है । द्रौपदी अपने इस अपमान से आहत है तथा अपनी पीड़ा को गर्जना में बदल पूरे राजभवन को ललकारती है-

ध्वंस विध्वंस प्रलय का दृश्य, भयंकर भीषण हाहाकार । 

मचाने आयी हूँ रे आज, खोल दे राजमहल का द्वार ॥

द्रौपदी अकेले ही पूरी राजसभा को अपने प्रश्नों के तीर से घायल कर देती है और दुःशासन समेत सम्पूर्ण सभा वाद-विवाद में द्रौपदी के तर्कों से परास्त होती है। द्रौपदी अपने पतियों को भी फटकारती है और युधिष्ठिर से पूछती है कि सर्वस्व हार जाने के पश्चात उन्हें द्रौपदी को हारने का क्या अधिकार रह गया ? इन सब तर्क-वितर्क का कोई हल न देखते हुए दुर्योधन अपना धैर्य खोने लगता है और दुःशासन को उसके वस्त्रहरण का आदेश देता है । द्रौपदी के रौद्र रुप को देखकर | दुःशासन घबरा उठता है और उसके वस्त्र खींचने में स्वयं को असमर्थ पाता है।

क्षुब्ध द्रौपदी पुनः कौरवों को वस्त्रहरण के लिए ललकारती है। सभी सभासद द्रौपदी के सत्य तथा सतीत्व के तेज का समर्थन करते हैं तथा कौरवों की निन्दा करते हैं। अन्त में धृतराष्ट्र द्रौपदी के पक्ष में खड़े होकर कौरवों से पाण्डवों को उनका राज्य तथा अधिकार वापस करने का आदेश देते हैं और द्रौपदी के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए पाण्डवों के कल्याण की कामना करते हैं। इसी के साथ खण्डकाव्य समाप्त होता है।

प्रश्र – ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कृष्ण’ का चरित्रांकन कीजिए। (मुजफ्फरनगर, शामली, बुलन्दशहर, मथुरा, वाराणसी, चन्दौली, फतेहपुर, उन्नाव, देवरिया आदि जनपदों के लिए)

उत्तर- ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कृष्ण’ का चरित्रांकन-

श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

अलौकिक शक्तिपुंज – मानवीय गुणों से युक्त श्रीकृष्ण अलौकिक शक्तिपुंज के प्रतीक लीलाधर योगेश्वर के रूप में खण्डकाव्य में प्रस्तुत होते हैं। जब संधि प्रस्ताव लाने पर दुर्योधन उन्हें बन्दी बनाना चाहता है तो कुपित होकर श्रीकृष्ण अपने विराट स्वरूप में प्रकट हो उठते हैं-

‘हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना रूप विस्तार किया। 

डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले 

जंजीर बढ़ाकर साध मुझे, हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे।’

विनम्र तथा व्यावहारिक – श्रीकृष्ण सांसारिक सिद्धि और सफलता के सभी नियमों से अवगत हैं तथा शील-संयम- सदाचार का स्रोत हैं वे पाण्डवों के पक्ष में इसीलिए खड़े रहते हैं क्योंकि वे एक सदाचार पूर्ण समाज का निर्माण करना चाहते हैं।

 स्पष्टवादी – वे युद्ध के पूर्व शान्ति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाते हैं और युवराज दुर्योधन को समझाने का प्रयास करते हैं दुर्योधन के युद्ध के बिना सुई की नोक भर भूमि न देने के संकल्प को सुनकर वही कौरव सभा में ही रणघोष कर अपना आदेश सुनाते हैं- 

तो ले मैं भी अब जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ ।

याचना नहीं अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा। 

कुशल कूटनीतिज्ञ – श्रीकृष्ण का चातुर्य विलक्षण हैं युद्ध को पाण्डवों के पक्ष में करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। वे कर्ण को कौन्तेय होने के भेद बताकर पाण्डवों की ओर करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु कर्ण इसे मित्र के साथ विश्वासघात मानकर अस्वीकार कर देता है।

युद्धकुशल तथा गुणाग्रही – युद्ध में सही समय पर उचित निर्णय लेने की कुशलता में श्रीकृष्ण अद्वितीय हैं। कर्ण का पहिया रक्त के कीचड़ में फँसने पर तथा कर्ण द्वारा उसे निकालने के प्रयत्न के दौरान ही कृष्ण अर्जुन को बाण चलाने का आदेश देते हैं।

प्रश्न – ‘त्यागपथी’ के आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्रांकन कीजिए। (आगरा, गोरखपुर, गाजीपुर, बरेली, सुल्तानपुर, जालौन, लखीमपुर, गोण्डा, शाहजहाँपुर, फिरोजाबाद, महाराजगंज, बाराबंकी जनपदों के लिए)

उत्तर : त्यागपथी खण्डकाव्य के आधार पर राज्यश्री का चरित्र चित्रण-

राज्यश्री त्यागपथी खण्डकाव्य की प्रधान नारी पात्र नायिका है। यह सम्राट हर्षवर्धन की छोटी बहन है, जिसका उदान्त चरित्र पाठकों के हृदय और मस्तिष्क पर छा जाता है। 

माता-पिता की लाडली – राज्यश्री अपने माता-पिता को प्राणों से भी प्यारी है। 

आदर्श नारी – राज्यश्री एक आदर्श बहन, पुत्री और पत्नी के रूप में हमारे सामने आती है। वह यौनावस्था में विधवा हो जाती है तथा गौणपति के द्वारा वन्दिनी बना ली जाती है और वन में भटकते हुए एक दिन आत्मदाह के लिए उद्यत हो जाती है किन्तु अपने भाई हर्षवर्द्धन द्वारा बचा लेने पर वह तन-मन-धन से अपना जीवन पुजारी की सेवा में अर्पित कर देती है किन्तु वह राज्य स्वीकार नहीं करती |

देशभक्त व जन सेविका – राज्यश्री के मन में देश-प्रेम और लोक-कल्याण की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर वह अपने वैधत्व का दुःख झेलते हुए देश सेवा में लगी रहती हैं। 

त्यागमयी नारी – राज्यश्री का जीवन त्याग की भावना से आलोकित है। भाई हर्षवर्धन द्वारा कन्नौज का राज्य दिये जाने पर भी वह उसे स्वीकार नहीं करती।

सुशिक्षिता नारी – राज्यश्री एक सुशिक्षिता नारी है। वह शास्त्रों के ज्ञान से भी सम्पन्न है। जब आचार्य दिवाकर मित्र सन्यास धर्म का तत्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते है तब राज्यश्री इसे स्वीकार कर लेती है और आचार्य की आज्ञा का पूर्णरुपेण पालन करती है। हम कह सकते हैं कि राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। उसके पतिव्रत धर्म, देश धर्म, करुणा और कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श निश्चय ही अनुकरणीय हैं।

प्रश्न – ‘आलोक-वृत्त’ के अनुसार महात्मा गाँधी का चरित्र- चित्रण कीजिए। (सहारनपुर, अलीगढ़, इलाहाबाद, फर्रूखाबाद, मैनपुरी, सीतापुर, मिर्जापुर, सोनभद्र जनपदों के लिए)

उत्तर- ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी का चरित्र-चित्रण-  गाँधी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित है-

मानवतावादी – गाँधी मानवमात्र में अन्तर को स्वीकार नहीं करते।वे सर्वधर्म समभाव, सद्भाव तथा समता के सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं तथा उसका पालन भी करते हैं। अस्पृश्यता, नस्लभेद तथा रंगभेद के मुद्दों पर गाँधी अत्यन्त संवेदनशील थे। साम्प्रदायिक एकता को वह राष्ट्रीय एकता-अखण्डता के लिए आवश्यक मानते थे। 

दृढ़ आस्तिक – ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखने वाले गाँधी अपने प्रत्येक कार्य में ईश्वर की ही साक्षी मानते थे। यही कारण था कि वह साध्य व साधन दोनों की ही पवित्रता को आवश्यक मानते थे।

सत्य व अहिंसा के पुजारी – गाँधी के जीवन का मूलमंत्र सत्य व अहिंसा था जिनके बल पर गांधी ने स्वाधीनता का स्वप्न साकार कर दिखाया। वे मानते हैं-

पशुबल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी। 

मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।

स्वतंत्रता के प्रबल आकांक्षी – गांधी में स्वाधीनता प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा है जिसे वे सत्य, अहिंसा तथा शान्ति जैसे गुणों से प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले गांधी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किये गये प्रयासों के प्रति सजग है और उनकी इच्छाशक्ति से सफल अहिंसक आन्दोलनों ने भारत की मुक्ति- गाथा लिखी।

सामान्य से महामानव बनता साधारण व्यक्तित्व – गाँधी का आरंभिक जीवन स्वाभाविक मानवीय दुर्बलताओं से युक्त था, किन्तु गाँधी ने शनैः-शनैः उन दुर्बलताओं की पहचान कर उन्हें अपने जीवन से दूर किया और एक सामान्य कद-काठी वाला अत्यन्त साधारण मनुष्य अपने सद्गुणों और संवेदनात्मक व्यवहार कुशलता से लाखों मनुष्यों का जीवन परिवर्तित करने वाला असाधारण महामानव बन गया।

प्रश्न – ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। (मेरठ, बागपत, आजमगढ़, बस्ती, रायबरेली, बाँदा, हरदोई, बहराइच, हमीरपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मऊ, सिद्धार्थ नगर जनपदों के लिए)

उत्तर- ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथावस्तु – डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘श्रवण कुमार’ प्राचीन काल में अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य तथा रमणीयता के साथ प्रारम्भ होता है। अयोध्या का जीवन सहज तथा आनन्द से परिपूर्ण है और प्रकृति ने भी अपनी अनुपम छटा यत्र-तत्र बिखेर रखी है। ऐसे ही वातावरण में अयोध्या के राजकुमार दशरथ, जो एक कुशल शब्दभेदी धनुर्धर है, आखेट के लिए जंगल की ओर निकल पड़ते हैं। प्रकृति की शोभा देखकर राजकुमार दशरथ मुग्ध हैं तथा आखेट की तलाश में प्रकृति की अठखेलियाँ भी आत्मसात् कर रहे हैं।

दूसरी ओर श्रवण कुमार इसी सुरम्य प्रदेश में बने आश्रम में अपना दिनचर्या को अपने अन्ध माता-पिता के चरणों में समर्पित कर प्रसन्न हैं।

आखेट पर निकले राजकुमार दशरथ मन ही मन अपने साथ होने वाले अपशकुनों को लेकर चिन्तित हैं और आखेट पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे हैं। इधर आश्रम में श्रवण कुमार के माँ-बाप को प्यास लगती है और श्रवण कुमार पानी लेने नदी के तट की ओर जाते हैं। नदी में घड़े को डुबोने पर होने वाली ध्वनि को सुनकर राजकुमार दशरथ हिंसक पशु का अनुमान कर शब्द भेदी बाण चला देते हैं जो सीधे श्रवण कुमार के हृदय को बेधकर उसे मरणासन्न कर देता है। श्रवण की चीत्कार से दशरथ को अपनी भूल का भान होता है और वे तत्काल श्रवण कुमार के पास पहुँचते हैं श्रवण कुमार उन्हें धिक्कारते हुए कहते हैं कि उन्होंने एक नहीं अपितु तीन जीवन नष्ट कर दिये और दशरथ से प्रार्थना करते हैं कि उनके माता-पिता को जल पिला दें। अपने सारथी को श्रवण कुमार की मृत देह के पास छोड़कर दशरथ उनके माता-पिता के पास चल देते हैं। वहाँ पहुँचकर दशरथ श्रवण के माता-पिता को श्रवण की मृत्यु का समाचार देते हैं तो विलाप करता हुआ दम्पत्ति श्रवण के सत्कर्मों को याद करने लगता है और क्रोध में श्रवण के पिता दशरथ को भी पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का शाप देते हैं। रोते हुए माता-पिता को दशरथ के साथ श्रवण की दिव्य आत्मा भी सांत्वना देती है। परन्तु वे अपने मन को समझा नहीं पाते। तदन्तर श्रवण के पिता को अपने शाप पर ग्लानि होती है कि ‘जो हुआ, वह विधाता का विधान था, राजकुमार दशरथ का दोष नहीं।’

वृद्ध तथा अन्ध दम्पत्ति पुत्र-वियोग में रो-रो कर अपने प्राण त्याग देता है और दुखार्द्र राजकुमार दशरथ तीनों की अन्त्येष्टि कर वापस अयोध्या आते हैं। यहाँ लोकापवाद के भय से वह किसी को कुछ नहीं बताते किन्तु इनकी आत्मा इस घटना से जीवन भर व्यथित रहती है। वर्षों बाद पुत्र राम के वन गमन पर दशरथ यह रहस्य कौशल्या के समक्ष खोलते हैं और पुत्र वियोग में अपने प्राण भी त्याग देते हैं।

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