Up Board Exam 2023

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा की टेंशन खत्म यह पढ़ लो हिंदी में पास हो जाओगे, यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी महत्वपूर्ण प्रश्न

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा की टेंशन खत्म यह पढ़ लो हिंदी में पास हो जाओगे, यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी महत्वपूर्ण प्रश्न

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी की महत्वपूर्ण प्रश्न 2023 – इस पोस्ट पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी का सभी महत्वपूर्ण टॉपिक एक भी पोस्ट भी लेकर आया है आप इसको पूरा पढ़ लेते हैं तो आपकी यूपी बोर्ड परीक्षा 2030 में यहां से प्रश्न पूछे जा सकते हैं इसलिए आप यहां पर बताए गए सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को जरूर तैयार कर लें और इसे तैयार करके ही अपने यूपी बोर्ड परीक्षा के पेपर में जाएं |

Up Board Exam 2023

UP Board Class 12th Hindi Model Paper Full Solution –

खण्ड-क

1. (क) वासुदेवशरण अग्रवाल की कृति है :

(a) ‘मेरी असफलताएँ’

(b) ‘माताभूमि’

(c) ‘आधे-अधूरे’

(d) ‘आखिरी चट्टान’

उत्तर : (b) वासुदेवशरण अग्रवाल की कृति ‘माताभूमि है।

(ख) निम्नलिखित में से हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचना नहीं है

(a) हिन्दी साहित्य की भूमिका’

(b) विचार और वितर्क’

(c) ‘बिल्लेसुर बकरिहा’

(d) ‘साहित्य का मर्म

उत्तर : (c) ‘बिल्लेसुर बकरिहा’

(ग) निम्नलिखित में से प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी की रचना है:

(a) ‘मेरे विचार’

(b) ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा

(c) ‘आलवाल’

(d) ‘मैंने सिल पहुँचायी’

उत्तर : (a) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी की रचना ‘मेरे विचार’ है।

(घ) ‘अग्नि की उड़ान’ पुस्तक के रचनाकार हैं :

(a) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

(b) दीनदयाल उपाध्याय

(c) धर्मवीर भारती

(d) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

उत्तर : (d) ‘अग्नि की उड़ान’ पुस्तक के रचनाकार पूर्व राष्ट्रपति ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’ हैं।

(ड़) फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कृति ‘ठुमरी’ किस विधा पर आधारित है?

(a) यात्रा संस्मरण

(b) उपन्यास

(c) कहानी

(d) रिपोर्ताज

उत्तर : (c) फणीश्वर नाथ रेणु की कृति ‘ठुमरी’ इनका ‘कहानी’ संग्रह है।

2. (क) ‘रसकलश’ किसकी रचना है?

(a) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

(b) जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

(c) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

(d) जयशंकर प्रसाद

उत्तर : (c) ‘रसकलश’ अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की रचना है । हरिऔध ने इसे 1940 ई. में लिखा था

(ख) मैथिलीशरण गुप्त की महाकाव्यात्मक कृति है:

(a) ‘भारत-भारती’

(b) ‘जयद्रथ वध’

(c) ‘यशोधरा’

(d) ‘साकेत’

उत्तर : (d) ‘साकेत’ मैथिलीशरण गुप्त की महाकाव्यात्मक कृति है।

(ग) निम्नलिखित में से जयशंकर प्रसाद की काव्यकृति नहीं है :

(a) ‘कानन कुसुम’

(b) ‘प्रेमपथिक’

(c) ‘चित्राधार’

(d) ‘इत्यलम्’

उत्तर : (d) ‘इत्यलम्’ जयशंकर प्रसाद की काव्यकृति नहीं है। इसके रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं।

(घ) सुमित्रानन्दन पन्त को ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ किस कृति पर मिला था ?

(a) कला और बूढ़ा चाँद’

(b) ‘लोकायतन’

(c) ‘चिदम्बरा’

(d) ‘स्वर्ण-किरण’

उत्तर : (b) सुमित्रानन्दन पंत को ‘लोकायतन’ के लिए 1965 ई. में सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार मिला।

(ड़) निम्नलिखित में से सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन का काव्य संकलन है :

(a) ‘लहर’

(b) ‘उर्वशी’

(c) ‘गुंजन’

(d) ‘हरी घास पर क्षण भर

उत्तर : (d) हरी घास पर क्षण भर’ सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का काव्य संकलन है।

3. दिए गए गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 5×2=10

भूमि का निर्माण देवों ने किया है, वह अनंत काल से है। उसके भौतिक रूप, सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है। भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरित होंगे उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी। यह पृथिवी सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी है। जो राष्ट्रीयता पृथिवी के साथ नहीं जुड़ी वह निर्मूल होती है। राष्ट्रीयता की जड़ें पृथिवी में जितनी गहरी होंगी उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा। इसलिए पृथिवी के भौतिक स्वरूप की आद्योपांत जानकारी प्राप्त करना, उसकी सुन्दरता, उपयोगिता और महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।

(क) भूमि का निर्माण किसने किया है और वह कब से है ?

(ख) यह पृथिवी सच्चे अर्थों में किसकी जननी है ?

(ग) ‘पार्थिव’ और ‘आद्योपांत’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए

(ड़) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर-

(क) भूमि का निर्माण अनन्तकाल से देवों ने किया है।

(ख) यह पृथिवी सच्चे अर्थो में समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी है।

(ग) पार्थिव – पृथ्वी से सम्बन्ध रखने वाला आद्योपांत – शुरू से अंत तक ।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या- प्रस्तुत गद्य पंक्तियों में लेखक का कथन है कि जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से सम्बद्ध नहीं होती, वह आधारहीन होती है और उसका अस्तित्व अल्प समय में ही समाप्त हो जाता है। वस्तुतः हम पृथ्वी के गौरवपूर्ण अस्तित्व के प्रति जितना सचेत रहते हैं, उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता बलवती होने की सम्भावना रहती है। राष्ट्रीयता का आधार जितना सशक्त होगा राष्ट्रीय भावनाएँ भी उतनी ही अधिक विकसित होगी।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नामक पाठ से उद्धृत इसके लेखक ‘वासुदेव शरण अग्रवाल’ हैं। है ।

अथवा

भगवान् बुद्ध ने मार विजय के बाद वैरागियों की पलटन खड़ी की थी। असल में ‘मार’ मदन का भी नामांतर है। कैसा मधुर और मोहक साहित्य उन्होंने दिया। पर न जाने कब यक्षों के वज्रपाणि नामक देवता इस वैराग्यप्रवण धर्म में घुसे और बोधिसत्त्वों के शिरोमणि बन गये फिर वज्रयान का अपूर्व धर्म-मार्ग प्रचलित हुआ। त्रिरत्नों में मदन देवता ने आसन पाया। वह एक अजीब आँधी थी। इसमें बौद्ध बह गये, शैव बह गये, शाक्त बह गये। उन दिनों ‘श्रीसुन्दरीसाधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव’ की महिमा प्रतिष्ठित हुई । काव्य और शिल्प के मोहक अशोक ने अभिचार में सहायता दी।

(क) भगवान् बुद्ध ने मार विजय के बाद क्या किया? (ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि कौन बन गया ?

(ग) ‘बोधिसत्त्व’ और ‘अभिसार’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

(इ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर :

(क) भगवान बुद्ध ने मार विजय के बाद वैरागियों की एक पलटन खड़ी की।

(ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि ‘यक्षों के वज्रपाणि’ नामक देवता बन गए।

(ग) बोधिसत्व सत्त्व के लिए प्रबुद्ध / शिक्षित |

अभिसार आगे बढना/ प्रिय से मिलने जाना।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहता है कि योग और भोग उन लोगों के हाथ में है जो श्री सुन्दरी के साधनों के प्रति समर्पित हैं।

(ङ) उपर्युक्त गद्यांश ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है। जिसके लेखक ‘डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी’ हैं।

4. दिए गए पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 5×2 = 10

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले ।

जाके आये न मधुवन से औ न भेजा संदेसा ।

मैं रो-रो के प्रिय विरह से बावली हो रही हूँ।

जाके मेरी सब दुःख कथा श्याम को तू सुना दे ॥

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी ।

शोभावाली सुखद कितनी मंजु कुंजे मिलेंगी

तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना ॥

प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे ।

(क) संदेश प्रेषिका ने ‘नव जलद से कंज से नेत्र वाले’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया है?

(ख) मधुवन जाकर किसने कोई सन्देश नहीं भेजा ?

(ग) ‘बावली’ और ‘अल्प’ शब्दों का अर्थ लिखिए।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

(इ) उपर्युक्त पद्यांश से सम्बन्धित कविता का शीर्षक तथा उसके रचयिता का नाम लिखिए।

उत्तर :

(क) संदेश प्रेषिका ने ‘नव जलद से कंज से नेत्र वाले’ शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयोग किया है।

(ख) मधुवन को छोड़कर जाने के पश्चात कृष्ण ने कोई संदेश नहीं भेजा।

(ग) बावली – पागल अल्प थोड़ा।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या- राधा पवन रूपी दूती को अपनी विरह व्यथा सुनाते हुए कहती है- जब से मेरे प्राण प्रिय नये बादलों के समान (जल से भरे) श्याम वर्ण, कमल से नेत्र वाले कृष्ण मथुरा गये तब से न ही वे मधुबन लौटकर आये और न ही कोई संदेश भेजा।

(ङ) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक ‘पवन दूतिका’ है तथा रचयिता अयोध्या सिंह उपाध्याय हैं।

अथवा

सुख भोग खोजने आते सब,

आये ‘तुम करने सत्य खोज,

जग की मिट्टी के पुतले जन,

तुम आत्मा के मन के मनोज !

जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर

चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,

पशुता का पंकज बना दिया

तुमने मानवता का सरोज ।

(क) इस दुनिया में सब लोग क्या खोजने आते हैं?

(ख) ‘बापू’ ने ‘पशुता के पंकज’ को क्या बना दिया ?

(ग) ‘स्पर्धा’ और ‘अहिंसा’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

(ङ) उपर्युक्त पद्यांश से सम्बन्धित कविता का शीर्षक तथा उसके रचयिता का नाम लिखिए।

उत्तर :

(क) इस दुनिया में सब लोग सुख भोग खोजने आते हैं।

(ख) बापू ने ‘पशुता के पंकज’ को चेतना अहिंसा और नम्र ओज से भर ‘मानवता का सरोज’ बना दिया।

(ग) स्पर्धा- प्रतियोगिता/ किसी काम में औरों से आगे बढ़ने का प्रयत्न । अहिंसा- किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना।

(घ) रेखांकित पंक्तियों में कवि पंत कहते हैं- ‘हे बापू मानव मिट्टी से निर्मित एक पुतला है, वह यहाँ मिट्टी से बनकर आता है और अन्त में मिट्टी में ही मिल जाता है। हे बापू आप भी मिट्टी के ही बने थे किन्तु आपके उस मिट्टी निर्मित शरीर में सत्य की आत्मा निवास करती थी।’

(ङ) उपर्युक्त पद्यांश ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है,इसके रचयिता ‘सुमित्रानन्दन पंत’ हैं।

5.(क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द) 3+2=5

(i) वासुदेवशरण अग्रवाल

(ii) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी

(iii) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

उत्तर-(i) वासुदेवशरण अग्रवाल वासुदेव शरण अग्रवाल ने 1904 ई. में लखनऊ के प्रतिष्ठत वैश्य परिवार में जन्म लिया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् पुरातत्व से जुड़े कई सरकारी संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर अग्रवाल जी आसीन रहे। विभिन्न संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयों में कार्यरत होने के पश्चात् अग्रवाल जी ने स्वाध्याय जारी रखा और पालि संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं के साथ प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्व पर समान अधिकार प्राप्त किया। भारतीय संस्कृति व साहित्य के गंभीर अध्येता के रूप में अग्रवाल जी हिन्दी साहित्य में विख्यात है। सन् 1967 में वासुदेव शरण अग्रवाल का निधन हो गया था।

माताभूमि, कल्पवृक्ष, भारत की एकता, पृथिवीपुत्र इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं, उरुज्योति, कला और संस्कृति, भारत सावित्रि कादम्बरी, पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ इनकी सम्पादित पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त ‘पद्मावत’ की संजीवनी व्याख्या तथा वाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ का सांस्कृतिक अध्ययन भी अग्रवाल जी द्वारा प्रस्तुत किया गया।

(ख) निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द) 3+2=5

(i) मैथिलीशरण गुप्त

(ii) महादेवी वर्मा

(iii) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

उत्तर : (i) मैथिलीशरण गुप्त – प्रसिद्ध राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगाँव, झाँसी में 3 अगस्त, 1886 ई. में हुआ था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के | सानिध्य में इनकी काव्य प्रतिभा मुखरित हुई तथा कविता में देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम का पुट होने के कारण हिन्दी साहित्य संसार ने ‘राष्ट्रकवि’ का सम्मान दिया। राष्ट्रपति द्वारा संसद के सदस्य मनोनीत किये गये तथा जीवन पर्यन्त साहित्य साधना की। 12 दिसम्बर, 1964 में इस राष्ट्रकवि का देहावसान हो गया।

गुप्त जी का काव्य संग्रह भारती’ था । तदन्तर साकेत, जयद्रथ वध, भारत-भारती, अनघ, द्वापर, यशोधरा, पंचवटी, सिद्धराज गुप्त जी की प्रमुख रचनाएँ है। प्राचीन भारतीय इतिहास की कथाएँ गुप्त जी के काव्यों का मूल कथानक रही जिससे भारतीय अतीत के गौरवशाली इतिहास के प्रति गुप्त जी का प्रेम स्पष्टतः परिलक्षित होता है। राष्ट्रप्रेम गुप्त जी की कविताओं का प्रमुख स्वर है। भारतीय जनमानस में वर्तमान परिपेक्ष्य के आधार पर राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने का श्रेय मैथिलीशरण गुप्त को जाता है।

(ii) महादेवी वर्मा –

आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा के रूप में ख्यातिलब्ध कवयित्री महादेवी वर्मा छायावादी चतुष्ट्य की देवी सरस्वती के रूप में भी जानी जाती है। इनका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। समृद्ध परिवार में पले-बढ़े होने के बावजूद इनका जीवन उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था। जीवन पर महात्मा गांधी और कला-साधना पर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के प्रभाव ने साहित्य सेवा को दिशा दी तथा अकादमिक व साहित्यिक जीवन में महादेवी ने नित नयी ऊँचाइयों को स्पर्श किया। कुछ वर्षो तक वह उत्तर- प्रदेश विधान परिषद् की सदस्या रही, भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ अलंकार से भी सम्मानित किया। प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या तथा उपकुलपति की नियुक्ति के साथ साहित्य- साधना जीवन भर चलती रही। 1987 ई. में प्रयागराज में ही महादेवी वर्मा का देहावसान हो गया।

महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्यवाद, सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल भाव बड़ी ही भावपूर्ण शैली में व्यक्त हुए हैं। मार्मिकता, रहस्यवाद, प्रकृति प्रधानता, बिम्बों की प्रचुरता महादेवी वर्मा के काव्यगत सौन्दर्य का आधार रहे। खड़ीबोली की कर्कशता को कलापूर्ण चित्रात्मक शैली में अपने व्यक्तित्व की सहज करूणा, संवेदनशीलता और संगीतात्मकता से परिवर्तित कर प्रकृति जगत के सूक्ष्म से सूक्ष्म स्पन्दनों को अभिव्यक्त करने की क्षमता से भर दिया। तत्सम शब्दावली ने कवयित्री के गीतों को गरिमामयी व्यंजना से परिपूर्ण कर दिया। कलापूर्ण चित्रात्मकता इनके गीत शिल्प का प्रमुख अवयव हैं।

इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ – रश्मि, नीहार, हिमालय, सान्ध्यगीत, दीपशिखा, यामा, नीरजा एवं सप्तपर्णा हैं। सूक्ष्म संवेदनशीलता, परिष्कृत सौन्दर्य रुचि, समृद्ध कल्पना शक्ति और अभूतपूर्व चित्रात्मक शैली उनके काव्य में जितनी गहराई के साथ उपस्थित है, उतनी किसी अन्य कवि की नहीं। अतः ‘हिन्दी साहित्य की महादेवी’ कहना महादेवी वर्मा के लिए अतिशयोक्ति न होगी।

6.’पंचलाइट’ अथवा ‘बहादुर’ कहानी का सारांश लिखिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)

उत्तर- ‘पचलाइट’ कहानी का सारांश फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘पंचलाइट’ में ग्रामीण अंचल के सामाजिक-आर्थिक- सांस्कृतिक ताने-बाने में गुँथे परिवेश का सुन्दर चित्रण है । गाँव का सामाजिक क्षेत्र टोलों में विभक्त है। महतो टोले में बड़ी बहार छायी है क्योंकि आज उनके टोले का ‘पंचलैट’ आ रहा है। पंचायत के सदस्य पंचलाइट अर्थात् पेट्रोमैक्स तथा पूजा की सामग्री इत्यादि खरीद तो लाते हैं, परन्तु जब पेट्रोमैक्स को जलाने की बारी आती है। तब सबको पता चलता है कि पूरी पंचायत क्या टोले में भी किसी को पंचलाइट जलाना नहीं आता। टोले का सारा उत्साह हवा हो जाता है और सुझावों के साथ मायूसी भी बढ़ती जाती है। तभी ग्राम की बाला मुनरी संकेतों के द्वारा पंचायत को गोधन का नाम सुझाती है। गोधन महतो टोले का नवयुवक है जो मुनरी के प्रति आकर्षित है। और उसे देखकर ‘सलीमा का गीत गाता है। इसकी शिकायत मुनरी की माँ गुलरी काकी पंचायत से कहती है और उसका हुक्का-पानी बन्द हो जाता है। अब इस धर्मसंकट में झुकने को तैयार हो जाती है और गोधन को पंचायत ‘पंचलैट’ जलाने के लिए बुलाती है। अब एक नयी समस्या सामने आती है कि स्पिरिट नहीं है तो लाइट जले कैसे ? परन्तु गोधन इसका हल निकालता है और गरी के || तेल के साथ महतो टोला पंचलाइट के प्रकाश में महावीर के कीर्तन के साथ उत्सव के रंग रंग जाता है। गोधन और मुनरी एक-दूसरे को देखते हैं, प्रेमाभिवादन होता है और गुलरी काकी गोधन को भोजन पर आमंत्रित करती हैं।

अथवा

उत्तर- ‘बहादुर’ कहानी का सारांश अमरकांत द्वारा लिखित कहानी ‘बहादुर’ एक नेपाली बच्चे के यथार्थ की कहानी है जिसका बाप मर चुका है और माँ के कर्कश व्यवहार के कारण वह अपने घर से भाग आया है। लेखक को अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से बहादुर घर के काम के लिए मिला था। आरम्भ में तो बहादुर की खूब आवभगत की गयी लेकिन दिन बीतने के साथ इसमें कमी आती गयी। लेखक की पत्नी, किशोर (लेखक का बड़ा लड़का ) तो मानो बस बहादुर को पीटने के बहाने ढूंढते रहते। बहादुर का बाल मन जब-तब आहत होता रहता परन्तु अगले दिन फिर हँसता-खेलता बहादुर पूरे घर के लिए चकरघिन्नी की तरह घूम-फिर कर काम करने लगता। एक बार मेहमानों के रुपये खो जाने पर जब घरवालों ने ‘बहादुर’ पर चोरी का आरोप लगा कर उससे दुर्व्यवहार किया तब बहादुर के स्वाभिमान को चोट पहुँची और एक दिन बिना किसी को बताये बहादुर अचानक घर छोड़कर चला गया। उसके जाने के बाद सारे घर में मातम छा गया। सारे घर वालों ने अपनी गलती स्वीकार कर पश्चाताप करने की ठानी, परन्तु उस पश्चाताप को स्वीकार उन्हें | माफ करने वाला बहादुर जा चुका था और ढूंढे नहीं मिल रहा था

अथवा

‘धुवयात्रा’ अथवा ‘बहादुर’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)

उत्तर- ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का उद्देश्य ध्रुवयात्रा हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित एक मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। कहानीकार ने इसमें मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया है। प्रस्तुत कहानी में जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बंधन है और विवाह एक सामाजिक बंधन । प्रेम की भावना व्यक्ति को लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करती है, प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता प्रेम की पवित्रता को आदर्शवाद की कसौटी पर कसना ही कहानी का प्रतिपाद्य रहा है। अपने प्रतिपाद्य को प्रकट करने में कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है। कहानीकार के अनुसार व्यक्तित्व की अपेक्षा सार्वभौमिक और अलौकिक उपलब्धि अधिक श्रेष्ठ है। अतः प्रेम की सर्वोच्चता को दर्शाना ही इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है।

अथवा

उत्तर- कहानी का उद्देश्य – अमरकान्त कृत कहानी ‘बहादुर’ का उद्देश्य समाज की विद्रूपता तथा उसके दोहरे चरित्र को सटीकता के साथ उजागर करता है। इस कहानी का उद्देश्य समाज में उत्पन्न वर्ग संघर्ष के अमानवीय रूप के दर्शन कराना तथा उसे सहानुभूति से विजित करने का सन्देश देता है। शोषितों के प्रति मानवता एवं प्रेम क़ा व्यवहार, ऊँच-नीच के भेद के कारण दिलों में पड़ी दरार को भर देता है। लेखक का मध्यमवर्गीय परिवार घर से भागकर आये लड़के बहादुर का जमकर शोषण करता है और झूठे दिखावे व शान शौकत के लिए बहादुर को नौकर रखता है। निर्मला का लड़का किशोर उस पर रौब जमाता है तथा उसे बात-बात पर र‍ मारता पीटता है। ये क्रिया कलाप मध्यमवर्गीय परिवारों की शोषक दु मानसिकता को अभिव्यक्त करते हैं तथा बहादुर की टूटती हुई स मनोस्थिति को मानवीय तरीके से महसूस कराते हैं। वर्ग संघर्ष की परिपाटी किस प्रकार एक छोटे बच्चे के मनोविज्ञान को प्रभावित करती है और मध्यमवर्गीय परिवार सत्कर्मों के आवरण के पीछे दुष्कर्मों और शोषण की निकट श्रृंखला को छिपाये रखते हैं- यही प्रकट करना इस कथा का उद्देश्य है।

7.स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर किसी एक खण्ड के एक प्रश्न का उत्तर दीजिए (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)

(क) ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए 5

अथवा

‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’ की कथावस्तु लिखिए।

(ख) ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘दुर्योधन’ का चरित्रांकन कीजिए।

अथवा

‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए ।

(ग) ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

अथवा

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कृष्ण’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(घ) ‘आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘गाँधीजी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा ‘आलोक – वृत्त’ खण्डकाव्य के ‘सप्तम सर्ग’ की कथावस्तु लिखिए।

(ङ) ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्र- चित्रण कीजिए।

अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की कथा अपने शब्दोंमें लिखिए।

(च) ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘श्रवणकुमार’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘अयोध्या’ सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- (ख) ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘दुर्योधन’ का चरित्रांकन- ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में दुर्योधन का चरित्र एक तुच्छ शासक का चरित्र है। वह असत्य, अन्याय तथा अनैतिकता का आचरण करता है। वह छल विद्या में निपुण अपने मामा शत्रुनि की सहायता से पाण्डवों को यूतक्रीड़ा के लिए आमंत्रित करता है और उनका सारा राज्य जीत लेता है। दुर्योधन चाहता है कि पाण्डव द्रौपदी सहित उसके दास-दासी बनकर रहे। वह द्रौपदी को सभा के बीच में वस्वहीन करके अपमानित करना चाहता है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

1. शस्त्रबल का पुजारी- दुर्योधन सत्य, धर्म और न्याय में विश्वास नहीं रखता। वह शारीरिक तथा तलवार के बल में आस्था रखता है। आध्यात्मिक एवं आत्मिक बल की उपेक्षा करता है।। दुःशासन के मुख से शस्त्रबल की प्रशंसा और शास्त्रबल की निन्दा सुनकर वह प्रसन्नता से खिल उठता है।

2. अनैतिकता का अनुयायी- दुर्योधन न्याय और नीति को छोड़कर अनीति का अनुसरण करता है। भले-बुरे का विवेक वह बिल्कुल नहीं करता। अपने अनुयायियों को भी अनीति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना ही उसकी नीति है। जब दुःशासन द्रौपदी का चीरहरण करने में असमर्थ हो जाता है तो दुःशासन की इस असमर्थता को वह सहन नहीं कर पाता है और अभिमान में गरज कर कहता है-

कर रहा क्या, यह व्यर्थ प्रलाप, भय वश था दुःशासन वीर।

कहा दुर्योधन ने उठ गरज, खींच क्या नहीं खिंचेगी चीर ॥

3. मातृद्वेषी- दुर्योधन बाह्य रूप में पाण्डवों को अपना भाई बताता है किन्तु आन्तरिक रूप से उनकी जड़ें काटता है। वह पाण्डवों का सर्वस्व हरण करके उन्हें अपमानित और दर-दर का भिखारी बनाना चाहता है। द्रौपदी के शब्दों में-

किंन्तु भीतर-भीतर चुपचाप, छिपाये तुमने अनगिन पाश ।

फँसाने को पाण्डव निष्कपट, चाहते थे तुम उनका नाश

4. असहिष्णुता – दुर्योधन स्वभाव से बड़ा ईर्ष्यालु है । पाण्डवों का बढ़ता हुआ यश तथा सुख-शांतिपूर्ण जीवन उसकी ईर्ष्या का कारण बन जाता है। वह रात-दिन पाण्डवों के विनाश की ही योजना बनाता रहता है। उसके ईर्ष्यालु स्वभाव का चित्रण देखिए-

ईर्ष्या तुम को हुई अवश्य, देख जग में उनका सम्मान ।

विश्व को दिखलाना चाहते, रहे तुम अपनी शक्ति महान्

निष्कर्षतः, हम कह सकते हैं कि दुर्योधन का चरित्र एक

साम्राज्यवादी शासक का चरित्र है।

अथवा

उत्तर- (ख) ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी कृत ‘सत्य की जीत’ नामक खण्डकाव्य महाभारत के ‘द्रौपदी चीरहरण’ पर आधारित है। कथानक दुर्योधन द्वारा पाण्डवों को द्यूतक्रीड़ा के लिए आमंत्रित करने के साथ प्रारंभ होता है। पाण्डव इस निमंत्रण को स्वीकार कर कौरवों के बिछाये छल जाल में फंस जाते हैं। कौरवों का पक्ष छल द्वारा को हराता चला जाता है और सर्वस्व हारने के पश्चात युधिष्ठिर पत्नी द्रौपदी को भी हार जाते हैं। इसके बाद दुर्योधन द्रौपदी के भरी सभा में अपमान के उद्देश्य से दुःशासन को आदेश देता है कि वह दासी द्रौपदी को राजसभा में लेकर आये। दुःशासन द्रौपदी को बलपूर्वक बालों से घसीटते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी अपने इस अपमान से आहत है तथा अपनी पीड़ा को गर्जना में बदल पूरे राजभवन को ललकारती है-

ध्वंस विध्वंस प्रलय का दृश्य, भयंकर भीषण हाहाकार

आयी हूँ रे आज, खोल दे राजमहल का द्वारा

॥ द्रौपदी अकेले ही पूरी राजसभा को अपने प्रश्नों के तीर से घायल कर देती है और दुःशासन समेत सम्पूर्ण सभा वाद-विवाद में द्रौपदी के तर्कों से परास्त होती है। द्रौपदी अपने पतियों को भी फटकारती है और युधिष्ठिर से पूछती है कि सर्वस्व हार जाने के पश्चात उन्हें द्रौपदी को हारने का क्या अधिकार रह गया? इन सब तर्क-वितर्क का कोई हल न देखते हुए दुर्योधन अपना धैर्य खोने लगता है और दुःशासन को (द्रौपदी को विजित मानते हुए) उसके वखहरण का आदेश देता है। द्रौपदी के रौद्र रुप को देखकर दुःशासन घबरा उठता है और उसके वस्त्र में स्वयं को असमर्थ पाता है।

क्षुब्ध द्रौपदी पुनः कौरवों को वस्त्रहरण के लिए ललकारती है। सभी सभासद द्रौपदी के सत्य तथा सतीत्व के तेज का समर्थन करते हैं तथा कौरवों की निन्दा करते हैं। अन्त में धृतराष्ट्र द्रौपदी के पक्ष में खड़े होकर कौरवों से पाण्डवों को उनका राज्य तथा अधिकार वापस करने का आदेश देते हैं और द्रौपदी के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए पाण्डवों के कल्याण की कामना करते हैं। इसी के साथ खण्डकाव्य समाप्त होता है।

खण्ड- ख

8. (क) दिए गए संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का ससंदर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए: 2+5=7

संस्कृतस्य साहित्यं सरसं व्याकरणञ्च सुनिश्चितम् । तस्य गद्ये पद्ये च लालित्यं, भावबोधसामर्थ्यम्, अद्वितीयं श्रुतिमाधुर्यञ्च वर्तते । किं बहुना चरित्रनिर्माणार्थं यादृशीं सत्प्रेरणा संस्कृतवाङ्मयं ददाति न तादृशीम् किञ्चिदन्यत् । मूलभूतानां मानवीयगुणानां यादृशी विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते नान्यत्र तादृशी । दया, दान, शौचम्, औदार्यम, अनसूया, क्षमा, अन्ये चानैक गुणाः अस्य साहित्यस्य अनुशीलनेन सञ्जायते ।

उत्तर- सन्दर्भ – प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्’ नामक शीर्षक से उद्धृत है। जिसमें संस्कृत भाषा की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। अनुवाद संस्कृत साहित्य सरस तथा इसका व्याकरण सुनिश्चित है। उसके गद्य और पद्य में लालित्य, भावों का बोध (कराने) की क्षमता, अद्वितीय और श्रुति मार्धुय है। अधिक क्या (कहें ), चरित्र निर्माण की जैसी उत्तम प्रेरणा संस्कृत साहित्य देता है, वैसा अन्य कोई (साहित्य) नहीं मूलभूत मानवीय गुणों का जैसा विवेचन संस्कृत साहित्य में मिलता है, वैसा अन्य कहीं नहीं ( मिलता )

अथवा

महामना विद्वान् वक्ता धार्मिको नेता, पटुः पत्रकारश्चासीत् । परमस्य सर्वोच्चगुणः जनसेवैव आसीत् । यत्र कुत्रापि अयं जनान् दुःखितान् पीड्यमानांश्चापश्यत् तत्रैव सः शीघ्रमेव उपस्थितः सर्वविधं साहाय्याञ्च अकरोत् । अस्य स्वभाव एवासीत् । अद्यास्माकं मध्येऽनुपस्थितोऽपि महामना मालवीयः स्वयशसोऽमूर्तरूपेण प्रकाशं वितरन् अन्धे तमसि निमग्नान् जनान् सन्मार्गं दर्शयन् स्थाने स्थाने जने जने उपस्थित एव ।

उत्तर – सन्दर्भ – प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीयः’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस अवतरण में मालवीय जी के व्यवहारिक गुणों का वर्णन है। अनुवाद- महामना विद्वान वक्ता, धार्मिक नेता और कुशल पत्रकार थे। जन सेवा ही (उनका) परम व सर्वोच्च गुण था। जहाँ कहीं भी उन्होंने लोगों को दुःखी और पीड़ित देखा, वहाँ वह (स्वयं) शीघ्र की उपस्थित होकर और सर्वप्रकारेण सहायता किया करते थे। प्राणी ((मात्र) की सेवा (करना) ही उनका स्वभाव था।

(ख) दिए गए श्लोकों में से किसी एक का ससंदर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए:

न मे रोचते भद्रं वः उलूकस्याभिषेचनम् अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो भविष्यति ।

उत्तर : सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक में से ‘जातक- कथा’ पाठ के ‘उलूकजातकम्’ शीर्षक से उद्धृत है।

अनुवाद – तुम लोगों का इस उल्लू को राजा बनाना मुझे ठीक नहीं लगता। इस समय के क्रोधहीन मुख को ही देखो, क्रुद्ध होने पर यह कैसा (विकृत) हो जाएगा ?

9. निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए।

(क) अधजल गगरी छलकत जाय

(ख) कलई खुलना

(ग) पानी-पानी होना

(घ) आम के आम गुठलियों के दाम

उत्तर : (क) अधजल गगरी छलकत जाय – सीमित ज्ञान होने पर भीअधिक ज्ञानी होने का आडम्बर करना ।

वाक्य प्रयोग – विषय के बारे में उसे बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी पर बड़े विद्वानों के सम्मेलन में उसका बार-बार बोलना उसके अधकचरे ज्ञान को प्रदर्शित कर रहा था जैसे अधजल गगरी छलकत जाय।

(ख) कलाई खुलना- भेद प्रकट होना।

वाक्य प्रयोग- इस घोटाले में गहन सी.बी.आई. छान-बीन के बाद मंत्री जी की कलाई खुल गई।

(ग) पानी पानी होना- लज्जित होना / शर्मसार होना ।

वाक्य प्रयोग- अपने ही घर में चोरी करते हुए पकड़े जाने पर रमेश पानी-पानी हो गया।

(घ) आम के आम गुठलियों के दाम दोहरा लाभ । वाक्य प्रयोग – राम पुरानी पुस्तकें खरीदकर पढ़ने के बाद उसे पुनः उसी दामों पर बेच दिया। इसी को कहते हैं, आम के आम गुठलियों के दाम

10. (क) निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए:

(i) ‘कवीन्द्रः’ का सही सन्धि-विच्छेद है

(a) कवि + ईन्द्रः

(b) कवी + इन्द्रः

(c) कवि + इन्द्र:

(d) कवी + इन्द्रः

उत्तर : (c) ‘कवीन्द्रः’ का सन्धि-विच्छेद कवि + इन्द्रः होगा। इसमें’दीर्घ स्वर सन्धि’ है।

(ii) ‘देवेशः’ का सही सन्धि-विच्छेद हैः

(a) देव + ईश

(b) देवा + ईश

(c) देवे + शः

(d) देवा + इश

उत्तर : (a) ‘देवेश’ का सन्धि-विच्छेद देव + ईशः होगा। इसमें ‘गुण सन्धि’ है।

(iii) ‘नाविकः’ का सही सन्धि-विच्छेद है:

(a) नाव + इकः

(b) नौ + विकः

(c) नौ + ईक

(d) नौ + इकः

उत्तर : (d) ‘नाविक’ का सन्धि-विच्छेद नौ इकः होगा। इसमें ‘अयादि सन्धि’ है।

(ख) दिए गए निम्नलिखित शब्दों की ‘विभक्ति’ ‘वचन’ के अनुसार सही चयन कीजिए:

(i) ‘आत्मनो:’ शब्द में विभक्ति और वचन हैः

(a) षष्ठी विभक्ति, बहुवचन

(b) षष्ठी विभक्ति, द्विवचन

(c) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन

(d) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन

उत्तर : (b) ‘आत्मनो:’ शब्द में ‘षष्ठी विभक्ति, द्विवचन’ होगा।

(ii) ‘नाम्ने’ शब्द में विभक्ति और वचन है:

(a) सप्तमी विभक्ति, एकवचन

(b) चतुर्थी विभक्ति एकवचन

(c) तृतीया विभक्ति, बहुवचन

(d) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन

उत्तर : (b) ‘नाम्ने’ शब्द में चतुर्थी विभक्ति एकवचन का है।

11. (क) निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए।

(i) अविराम अभिराम –

(a) रुककर और सुन्दर

(b) लगातार और कुरूप

(c) लगातार और सुन्दर

(d) लेटकर और भद्दा

उत्तर : (c) अविराम का अर्थ लगातार अर्थात बिना रुके और अभिराम का अर्थ सुन्दर होता है।

(ii) जलद जलधि

(a) बादल और समुद्र

(b) पानी और समुद्र

(c) इन्द्र और पर्वत

(d) जल और पर्वत

उत्तर : (a) जलद का अर्थ बादल और जलधि का अर्थ होता है।

(ख) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए:

(i) दल

(ii) मित्र

(iii) दाम

उत्तर :

(i) दल दल के दो अर्थ – संगठन, पौधे का छोटा कोमल पत्ता ।

(ii) मित्र शब्द के दो अर्थ- सखा, सहचर ।

(iii) दाम शब्द के दो अर्थ- कीमत, फंदा, जाल, बंधन

(ग) निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द का चयन करके लिखिए:

(i) जो ईश्वर में विश्वास करता है:

(a) अकृतज्ञ

(b) कृतज्ञ

(c) आस्तिक

(d) नास्तिक

उत्तर : (c) जो ईश्वर में विश्वास करता है- ‘आस्तिक’।

(ii) जो गलत कार्य के लिए हठ करे :

(a) दुराग्रह

(b) दुराग्राही

(c) सदाग्रही

(d) सत्याग्रही

उत्तर : (b) जो गलत कार्य के लिए हठ करे दुराग्राही ।

(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:

(i) यह पद्यांश नौकाविहार कविता से संग्रहीत है।

(ii) क्या मेरा तौलिया सूख गया ?

(iii) तुम मेरे से मत बोलो।

(iv) निरपराधी को दण्ड नहीं देना चाहिए।

उत्तर :

(i) यह पद्यांश नौकाविहार कविता में संग्रहीत है।

(ii) क्या मेरी तौलिया सूख गयी ?

(iii) तुम मुझसे मत बोलो।

(iv) निरपराध को दण्ड नहीं देना चाहिए।

12. (क)’वीर’ अथवा ‘करुण’ रस का लक्षण और एक उदाहरण लिखिए ।

उत्तर: वीर रस का लक्षण-विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से ‘उत्साह’ नामक स्थायी भाव ‘वीर’ रस की उत्पत्ति करता है।

उदाहरण- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है। वक्त आने पे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ हम अभी से क्या बताए क्या हमारे दिल में है।।

अथवा

करुण रस का लक्षण- ‘शोक’ नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस की उत्पत्ति करता है।

उदाहरण-

‘विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली !’

(ख) ‘श्लेष’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार का लक्षण और उदाहरण लिखिए । 1+1=2

उत्तर : श्लेष अलंकार का लक्षण – जब किसी शब्द का प्रयोग एक ही बार किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते है, तब श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण – चरण धरत चिंता करत चितवन ओर।

चारहु सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।

उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण – जहाँ उपमेय में उपमान होने की सम्भावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मानो, मानो, मनु, मनहु, जाने, इव, जनु, जानहु, ज्यो आदि शब्द यदि किसी अलंकार में आते हैं तो वह उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

उदाहरण – फूले कास सकल महि छाई ।

जनु वरखा रितु प्रकट बुढ़ाई ||

(ग) ‘दोहा’ अथवा ‘कुंडलियाँ’ छन्द का लक्षण और उदाहरण लिखिए ।

उत्तर : दोहा छंद का लक्षण दोहा एक मात्रिक छंद है जिसके प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं तथा दूसरे और अंतिम चरण में 11-11 मात्राएँ होती है। यति चरण के अंत में होती है। सम चरणों के अंत में लघु होता है।

उदाहरण- मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय ।

जा तन की झांई परे श्याम हरित दुति होय ।।

कुंडलियाँ छंद का लक्षण  – कुंडलियाँ, दोहा और रोला के योग से बना विषम मात्रिक छन्द है। इस छंद के छः (6) चरण होते हैं। तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण – बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताय । काम बिगारे आपनों जग में होत हँसाय ।। जग में होत हँसाय चित में चैन न पावे। खान पान सम्मान राग रंग मनहि न भावै।। कह गिरधर कविराय दुःख कछु तरत न तारे । खरकत है जिस भाँति कियो जो बिना विचारे ।।

13. कृषि यंत्रों की दुकान खोलने के लिए किसी बैंक के शाखा प्रबंधक को एक आवेदन पत्र लिखिए, जिसमें – ऋण की माँग की गयी हो ।

उत्तर :

सेवा में,

श्रीमान प्रबन्धक

पंजाब नेशनल बैंक,

विषय फ्लोर रोड, इलाहाबाद। ‘: व्यवसाय-ऋण प्रदान किये जाने हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,

सविनय निवेदन है कि वर्ष 20… में शेखावत सिंह विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद से अब तक मुझे कहीं कोई रोजगार प्राप्त नहीं हो सका है। इसीलिए मैं कृषि यंत्रों का व्यवसाय आरम्भ करना चाहता हूँ, किन्तु आर्थथन होने के कारण व्यवसाय करने में | असमर्थ हूँ। मुझे ज्ञात हुआ है कि बेरोजगारों के लिए व्यवसाय हेतु | अनेक प्रकार की सरकारी ऋण योजनाएँ चल रही हैं।

अतः आपसे सविनय निवेदन है कि मुझ बेरोजगार को कृषि यंत्र की दुकान खोलने हेतु 5,00,000 ₹ का ऋण प्रदान कराने

की कृपा करें।

सधन्यवाद !

दिनांक :

प्रार्थी

अब स

पुत्र श्री/

27/9 राजेन्द्र नगर, इलाहाबाद

अथवा

नैत्यिक लिपिक के पद पर अपनी नियुक्ति के लिए किसी विद्यालय के प्रबन्धक को एक आवेदन पत्र लिखिए।

उत्तर:

सेवा में,

प्रधानाचार्य

राजकीय इण्टर कॉलेज,

कानपुर

विषय – विद्यालय में लिपिक पद हेतु आवेदन पत्र ।

महोदय,

दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित आपके विज्ञापन के संदर्भ में सविनय निवेदन है कि प्रार्थी लिपिक पद हेतु एक योग्य उम्मीदवार है। प्रार्थी को कम्प्यूटर कोर्स तथा हिन्दी और अंग्रेजी की टाइपिंग का पूर्ण ज्ञान है। इस सम्बन्ध में आपके द्वारा जारी सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मैंने सभी आवश्यक कागजात इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न कर दिया गया है। अगर मुझे इस सेवा का अवसर प्रदान किया जाता है तो मैं मेहनत तथा ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पूर्णनिष्ठा के साथ पालन करूंगा।

अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मेरे आवेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए मुझे सेवा का अवसर प्रदान करने की कृपा करें।

दिनांक- 23.07.2020

भवदीय– अ. ब. स

संलग्नक- सभी आवश्यक कागजातों की प्रमाणित फोटों.

14.निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा शैली में निबन्ध लिखिए:

(क) किसान जीवन की त्रासदी

(ख) मुंशी प्रेमचन्द्र का कथा साहित्य में योगदान

(ग) विज्ञान वरदान या अभिशाप

(घ) राष्ट्रीय एकता आज की अनिवार्य आवश्यकता

(ड़) विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व

उत्तर :

(क) किसान जीवन की त्रासदी –

प्राचीनकाल से ही भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। आज भी इसकी अधिकांश जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर ही अपनी जीविका के लिए निर्भर है। कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के पश्चात् भी भारतीय किसान की दशा अत्यन्त दयनीय है। खाने के लिए भोजन उपलब्ध कराने वाला अन्नदाता किसान कर्ज, सूदखोरी, अशिक्षा, अज्ञानता तथा मौसमी कृषि इत्यादि के चलते सदा शोचनीय स्थिति में ही रहता और किसानों की जयकार करने वाले इस देश की सामाजिक-आर्थिक- सांस्कृतिक-राजनीतिक बुद्धि इस तबके की ओर नजर भर देखना भी उचित नहीं समझती |

कृषि में निवेश का अभाव, प्रभावी सरकारी नीतियों का अभाव, कृषि उत्पादों की कीमतों पर अत्यधिक हस्तक्षेप, विमुद्रीकरण के कारण आपूर्ति श्रृंखला में गिरावट, सिंचाई सुविधाओं का अनियमितीकरण, सुस्त उर्वरक उद्योग, भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता, किसान उत्पादक संगठनों की अक्षमता, किसानों द्वारा लिया गया कर्ज ऐसी समस्याएँ है जो भारतीय कृषि को गहरे तक प्रभावित करती हैं। बिचौलिओं की खेप किसान के लाभ का अधिकांश हड़प जाते हैं। खेती के पेशे को छोड़कर शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति अब गाँवों में पांव पसार रही है। समस्याओं से भरे कृषि व्यवसाय को मौसम की मार जैसे अकाल, बाढ़, वर्षा का न होना और भी दुरुह बना देती है। देशभर में किसानों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना रहा है और यहीं से उनकी सबसे बड़ी समस्या का श्री गणेश भी होता है। किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें तो सुर्खियों में छायी ही रहती हैं। पुलिस के साथ होने वाली झड़पें किसानों के असंतोष को उजागर करती है। कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में 16 प्रतिशत का तथा रोजगार में 49 प्रतिशत का हिस्सा है। ऐसे में कृषकों की समस्या खराब कृषि प्रदर्शन, राजनीतिक संकट, जन असंतोष का कारण बन सकती हैं। जिससे विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा मिल सकता है।

यूँ तो कृषकों की समस्या कोई नयी बात नहीं है परन्तु आज तक कृषकों की समस्याओं के समाधान की ईमानदारी से कोशिश नहीं की गयी है। कृषि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। हरित क्रान्ति के साथ पशुपालन तथा इससे जुड़े कुटीर उद्योगों को विकसित कर कृषकों को आय वृद्धि के नये स्रोतों से जोड़ना भी कृषि व्यवसाय की उत्पादकता में वृद्धि कर सकता है। खेती में वित्त की समस्या से निपटने के लिए लोन की सुगमता, किसान क्रेडिट कार्ड, न्यूनतम समर्थन मूल्य, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नैम की व्यवस्था, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, राष्ट्रीय पशुधन मिशन जैसी पहल सराहनीय है और इस क्षेत्र में अतिरिक्त सुधारात्मक कदम उठाये जाने की सम्भावनाएं प्रबल हैं। कृषि क्षेत्र में नवाचार करते हुए ऐसी फसलों तथा खाद की खोज को बढ़ावा मिलना चाहिए जिससे फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो, मिट्टी की उर्वरता में कमी न हो तथा पर्यावरण को भी सहेजा जा सके। कर्जमाफी जैसी अल्पकालिक नीति समुचित रूप से प्रभावी नहीं होगी, लिहाजा कृषि से सम्बन्धित दीर्घकालिक नीतियों के निर्माण की आवश्यकता है। कृषि सब्सिडी में भी तर्कसंगत परिवर्तन अनिवार्य हैं। कृषि उत्पादों के भण्डार तथा उनके वितरण वाले पहलू पर सरकार को ध्यान देना होगा।

वास्तव में वृहद् कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की दरकार है। जिसके लिए सरकार तथा जनता को मिलकर कार्य करना होगा।

(ग) विज्ञान वरदान या अभिशाप

प्रस्तावना- आज का युग विज्ञान का युग है। आज के वैज्ञानिक युग ने मनुष्य के जीवन में बहुत ही प्रभाव उत्पन्न किया है। आज मनुष्य के जीवन में जितनी भी गतिविधियां हो रही हैं, वो सब विज्ञान की वजह से ही संभव हो पायी हैं मनुष्य ने जो प्रगति की है, उसका इतिहास इस बात का साक्षी है कि वह किसी समय जानवरों जैसा जीवन जीता था। गुफाओं में रहता था, कच्चा मांस और फल सब्जियाँ खाता था, पेड़ों और पौधों की पत्तियों और छालों को कपड़े की तरह पहनता था। धीरे-धीरे उसने आग जलाना सिखा और वहाँ से वह आगे चला गया और आधुनिक युग में बहुत आगे चला गया।

  1. परिवहन के क्षेत्र में पहले लम्बी यात्राएँ दुरूह स्वप्न -सी लगती थीं, किन्तु आज रेल, मोटर और वायुयानों ने लम्बी यात्राओं को अत्यन्त सुगम व सुलभ कर दिया है। पृथ्वी पर ही नहीं, आज के वैज्ञानिक साधनों के द्वारा मनुष्य ने चन्द्रमा पर भी अपने कदमों के निशान बन दिये हैं।
  2. संचार के क्षेत्र में टेलीफोन, टेलीग्राम, टेलीप्रिण्टर, टैलेक्स, फैक्स, ई-मेल आदि के द्वारा क्षणभर में एक स्थान से दूसरे स्थान को सन्देश पहुँचाए जा सकते हैं। रेडियो और टेलीविजन द्वारा कुछ ही क्षणों में किसी समाचार को विश्वभर में प्रसारित किया जा सकता है।
  3. चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में तो विज्ञान वास्तव में वरदान सिद्ध हुआ है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति इतनी विकसित हो गई है कि अन्धे को आँखें और विकलांगों को अंग मिलना अब असम्भव नहीं है। कैंसर, टी.वी., हृदयरोग जैसे भयंकर और प्राणघातक रोगों पर विजय पाना विज्ञान के माध्यम से ही संभव हो सका है।
  4. खाद्यान्न के क्षेत्र में आज हम अन्न उत्पादन एवं उसके संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं। इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है। विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं, खेती के आधुनिक साधनों तथा सिंचाई सम्बन्धी कृत्रिम व्यवस्था ने खेती को अत्यन्त सरल व लाभदायक बना दिया है।
  5. उद्योगों के क्षेत्र में उद्योगों के क्षेत्र में विज्ञान ने क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। विभिन्न प्रकार की मशीनों ने उत्पादन की मात्रा में कई गुना वृद्धि की है।
  6. दैनिक जी
  7. वन में – हमारे दैनिक जीवन का प्रत्येक कार्य अब विज्ञान पर ही आधारित है। विद्युत हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गई है। बिजली के पंखे, कुकिंग गैस स्टोव, फ्रिज आदि के निर्माण ने मानव को सुविधापूर्ण जीवन का वरदान दिया है। इन आविष्कारों से समय, शक्ति और धन की पर्याप्त बचत हुई है।

उपसंहार – जहाँ पर विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान साबित हुआ। वहीं पर अभिशाप भी साबित होता है। यह बात मनुष्य पर निर्भर है। करती है कि वह उसका प्रयोग वरदान के रूप में करता है या फिर अभिशाप के रूप में विज्ञान एक तलवार की तरह होता है। जिससे मनुष्य की रक्षा भी की जा सकती है और उससे अपने आप को हानि भी पहुँचाई जा सकती है। इसमें तलवार का दोष नहीं होता है मनुष्य का होता है। विज्ञान एक ऐसा साधन जिसने विकास के मार्ग को खोल दिया है। जिससे सम्पूर्ण विश्व की बेरोजगारी, भुखमरी को खत्म किया जा सकता है।

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