Up Board Exam 2023

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा की टेंशन खत्म, यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी महत्वपूर्ण प्रश्न 2023

Up Board Exam 2023 : यूपी बोर्ड परीक्षा की टेंशन खत्म, यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी महत्वपूर्ण प्रश्न 2023

यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी की महत्वपूर्ण प्रश्न 2023 – इस पोस्ट पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी का सभी महत्वपूर्ण प्रश्न को लेकर आया है आप इसको पूरा पढ़ लेते हैं तो आपकी यूपी बोर्ड परीक्षा 2030 में यहां से प्रश्न पूछे जा सकते हैं इसलिए आप यहां पर बताए गए सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को जरूर तैयार कर लें और इसे तैयार करके ही अपने यूपी बोर्ड परीक्षा के पेपर में जाएं |

 

Up Board Exam 2023

UP Board Class 12th Hindi important question  –

समय : तीन घण्टे 15 मिनट

नोट : i) प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्नपत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।

ii) इस प्रश्नपत्र में दो खण्ड हैं, दोनों खण्डों के सभी प्रश्नों के उत्तर देना आवश्यक है।

खण्ड- क

5. (क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए:

(i) वासुदेवशरण अग्रवाल

(ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

(iii) प्रो. जी. सुन्दर रेही।

उत्तर – (i) वासुदेवशरण अग्रवाल जीवन परिचय

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में प्राचीन संस्कृति एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1904 ई. में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे। अतः इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा वहीं से प्राप्त की। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी. ए. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय में इन्होंने अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। बाद में डी. लिट् भी लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग के वे अध्यक्ष एवं आचार्य रहे।

पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा उनके साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया। वे केन्द्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक तथा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे। हिन्दी साहित्य एवं पुरातत्व के ज्ञाता इस विद्वान ने सन् 1967 में इस नश्वर संसार को छोड़ दिया।

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख कृतियाँ हैं-

निबंध संग्रह – भारत की कला, पृथ्वीपुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, वाग्धारा।

समीक्षात्मक ग्रंथ – मलिक मुहम्मद जायसीकृत पद्मावत तथा कालिदासकृत मेघदूतम् की संजीवनी व्याख्या

शोध ग्रन्थ – पाणिनिकालीन भारत।

भाषा शैली – डॉ. अग्रवाल की भाषा शैली शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग होते हुए भी इसमें सरसता है। इनके निबन्धों में हमें गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक उद्धरण, भावात्मक विचारात्मक, सुक्ति-कथन शैलियों के दर्शन होते , हैं। भारतीय संस्कृति और रचनाओं में इनका नाम चिरस्मरणीय रहेगा।

(ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय 

जीवन परिचय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त, 1907 ई. को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनके पिता उच्च कोटि के ज्योतिष विद्या के ज्ञाता थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने बसरिया के मिडिल स्कूल से मिडिल पास किया। वर्ष 1930 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1940 से वर्ष 1950 तक ये शान्ति निकेतन में हिन्दी भवन के निदेशक के रूप रहे। वर्ष 1950 तक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। 1957 ई. में इन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 9 मई सन् 1979 ई. को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी परलोकवासी हो गये।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएँ –
निबन्ध-संग्रह – अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क,विचार-प्रवाह, कुटजा

उपन्यास – ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारूचंद्रलेख’, ‘पुनर्नवा’, ‘अनामदास का पोथा । अन्य पृथ्वीराज रासो संदेश रासक, सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, नाथ संप्रदाय, मेघदूत एक पुरानी कहानी,साहित्य सहचर, सहज साधना ।

साहित्यिक परिचय – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी और संस्कृत में आधुनिक युग श्रेष्ठ समीक्षक और महान निबन्धकार थे। हिन्दी और संस्कृत साहित्य का उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। 1 कबीर, सूर तथा तुलसी आदि भक्त कवियों पर गम्भीर गवेषणा की। उन्होंने धर्मों तथा मत-मतान्तरों के साहित्य का अपने से गम्भीर मनन और चिन्तन किया था।

(iii) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का जीवन परिचय –

जीवन परिचय – प्रो. जी सुन्दर रेड्डी का जन्म 10 अप्रैल, 1919 ई. को आन्ध्र प्रदेश के बेल्लूर जनपद के बत्तुलपल्लि नामक ग्राम में हुआ था। हिन्दी के विकास में इनका योगदान प्रशंसनीय है। दक्षिण भारतीय होते हुए भी इनकी हिन्दी भाषा शैली उच्च कोटि की में है इनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और तेलुगू में हुई और उच्च शिक्षा हिन्दी में ये ‘आन्ध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के बहुत समय तक अध्यक्ष रहे हिन्दी के इस महान साधक का देहावसान 30 मार्च, 2005 ई. को हो गया।

कृतित्व प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी के प्रकाशित ग्रन्थ हैं-

  • साहित्य और समाज
  • मेरे विचार
  • हिन्दी और तेलुगू एक तुलनात्मक अध्ययन लैंग्वेज प्रॉबलम् इन इण्डिया (सम्पादित अंग्रेजी ग्रन्थ)
  • तेलुगू दारूल (तेलुगू)

साहित्यिक सेवाएँ – प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी हिन्दी के प्रकाण्ड पण्डित है। आंध्र विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग में हिन्दी और तेलुगू साहित्यों के विविध प्रश्नों पर इन्होंने तुलनात्मक अध्ययन और शोधकार्य कराया है। तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम के साहित्य और इतिहास का सूक्ष्म विवेचन करने के साथ-साथ हिन्दी भाषा और साहित्य से भी उनकी तुलना करने में आप पर्याप्त रूचि लेते हैं।

भाषा-शैली – उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी, तेलुगू तथा अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में प्रो. रेड्डी के अनेक निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। ये अहिन्दी प्रदेश के निवासी होते हुए भी इन्होंने हिन्दी भाषा पर अच्छा अधिकार प्राप्त किया है। इन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से भाषा और आधुनिकता पर विचार किया है इनकी निबन्ध शैली विवेचनात्मक है, इनकी भाषा सरलता, स्पष्टता और सहजता के गुणों से परिपूर्ण है भाषा को सम्पन्न बनाने के लिए उन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रो. रेड्डी के शैली के रूप हैं।

(i) विचारात्मक शैली

(ii) गवेषणात्मक शैली

(iii) समीक्षात्मक शैली

(ख) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)

(i) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

(ii) जयशंकर प्रसाद

(iii) सुमित्रानन्दन पंत

उत्तर-

(i) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जीवन परिचय –

जीवन परिचय – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 15 अप्रैल 1865 ई. को आजमगढ़ जिले के निजामाबाद गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. भोला सिंह और माता का नाम रूक्मिणी देवी था। मिडिल परीक्षा उत्तीण करने के पश्चात् उन्होंने काशी के क्वीन्स कॉलेस में प्रवेश लिया, किन्तु अस्वस्थता के कारण उन्हें बीच में ही अपना विद्यालय छोड़ना पड़ा। तत्पश्चात् उन्होंने घर पर ही फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया।

इनका विवाह आनन कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ। हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे कानूनगो हो गये। कानूनगो पद से अवकाश प्राप्त करके हरिऔध जी ने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ में अवैतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया । हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1947 ई. में निजामाबाद में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएं खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में हरिऔध जी का नाम अत्यधिक सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं-

(1) नाटक- ‘प्रदुम्न-विजय’ तथा ‘रूक्मिनी’ परिणय’ |

( 2 ) उपन्यास प्रेमकान्ता, ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल’ ।

काव्य-ग्रन्थ – हरिऔध जी ने काव्य में भी अपनी छवि बिखेरी है| उन्होंने पन्द्रह से अधिक छोटे-बड़े काव्यों की रचना की।

उनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं-

(i) प्रियप्रवास

(ii) रस-कलश

(iii) चुभते चौपदे

(iv) वैदेही वनवास

प्रियप्रवास , हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका

(ii) जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय –

जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। इनका जन्म काशी के एक सम्पन्न वैश्य परिवार में 1889 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था उनके पिता के बड़े भाई बचपन में ही स्वर्गवासी हो गये थे। जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कॉलेज में हुई, किन्तु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिन्दी उर्दू तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से बज्रभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, पुराण, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया था। वे नागरी प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे। क्षय रोग से 15 नवम्बर, 1937 ई. को प्रातः काल में 47 वर्ष की आयु में उनका देहांत काशी में हुआ।

साहित्यिक व्यक्तित्व जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य के – जन्मदाता एवं छायावादी युग प्रवर्तक समझे जाते हैं इनकी रचना ‘कामायनी’ एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है। जयशंकर प्रसाद छायावादी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि रहे हैं। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है, ये जीवन की अनिवार्य रूप से उत्पन्न होने वाली स्थायी समस्याओं का मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित समाधान ढूंढने के लिए प्रयत्नशील रहे। जयशंकर प्रसाद को ‘छायावादी युग का स्तम्भ के नाम से जाना जाता है।

रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं, इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं कामायनी (महाकाव्य), – उर्वशी, (चम्पूकाव्य) चन्द्रगुप्त मौर्य (नाटक), शोकोच्छवास (कविता), प्रेमराज्य, सज्जन (नाटक), कल्याणी परिणय (एकांकी), अजातशत्रु (नाटक), कामना (नाटक), आँसू (काव्य), जनमेजय का नागयज्ञ (नाटक), प्रतिध्वनि (कहानी-संग्रह), एक घूंट (एकांकी), आकाशदीप (कहानी संग्रह), ध्रुवस्वामिनी (नाटक), तितली (उपन्यास), कंकाल (उपन्यास), लहर (काव्य- संग्रह), झरना (कविता), चित्राधार (काव्य-संग्रह) ।

(iii) सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय –

जीवन परिचय – सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, 1900 ई. को हुआ जन्म के छह घण्टे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका नाम गोसाई दत्त रखा गया इनकी प्रारंभिक शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ यहीं पर उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानन्दन पन्त रख लिया। 1919 ई. में पन्तजी अपने मंझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे वहां से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गये। 1950 ई. में वे आल इण्डिया रेडियो’ के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और 1957 ई तक वे प्रत्यक्ष रूप से रेडियो से सम्बन्धित रहे । उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 ई. को हुई।

साहित्य –सृजन सुमित्रानन्दन पन्त सात वर्ष की उम्र में जब वे – चौथी कक्षा में ही पढ़ रहे थे, उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था 1916 ई. के आस-पास तक वे हिन्दी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस दौर की उनकी कविताएँ वीणा में संकलित हैं। 1928 ई. में ‘पल्लव नामक ‘काव्य संग्रह’ प्रकाशित हुए। कुछ समय पश्चात् वे अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोड़ा आ गये। इसी दौरान वे मार्क्स व फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आये। 1939 ई. में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील ‘मासिक पत्र’ निकाला। शमशेर, रघुपति सहाय आदि के साथ वे – प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे वे आकाशवाणी से जुड़े और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया। उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पड़ाव हैं। प्रथम वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिशील तथा तीसरे में अरविन्द दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी 1942 ई. के पश्चात् वे महर्षि अरविन्द घोष से मिले और उनसे प्रभावित होकर अपने काव्य में उनके दर्शन को मुखरित किया। इन्हें इनकी रचना ‘कला और बूढ़ा चांद’ पर ‘साहित्य अकादमी’, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत’ लैण्ड पुरस्कार और ‘चिदम्बरा’ पर ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला।

सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं इन्होंने प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्रण में विकृत तथा कठोर भावों को स्थान नहीं दिया है। इनकी छायावादी कविताएं अत्यन्त कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैं। इन्हीं कारणों से पन्त को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। रचना- सुमित्रानन्दन पन्त जी ने साहित्यिक जीवन में विविध विधाओं में साहित्य-रचना की। उनकी प्रमुख कृतियों का विवरण इस प्रकार है-

लोकायतन इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और – दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है। इस रचना में कवि ने ग्राम्य- जीवन और जन भावना को छन्दोबद्ध किया है।

वीणा – इस रचना में पन्त जी के प्रारंभिक प्रकृति के अलौकिक सौन्दर्य से पूर्ण गीत संग्रहीत है ।

पल्लव – इस संग्रह में प्रेम, प्रकृति और सौन्दर्य के व्यापक चित्र प्रस्तुत किये गये हैं।

गुंजन – इसमें प्रकृति प्रेम और सौन्दर्य से संबंधित गम्भीर एवं प्रौढ़ रचनाएँ संकलित की गई हैं।

अन्य रचनाएँ- ‘स्वर्णधूली’ ‘स्वर्ण -किरण’ ‘युगपथ’ ‘उत्तरा’ तथा ‘अतिमा’ आदि में पन्तजी, महर्षि अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित हैं। इन रचनाओं में कवि ने दीन-हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है।

6.’बहादुर’ अथवा ‘लाटी’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। (शब्द सीमा अधिकतम 80 )
‘बहादुर’ कहानी का उद्देश्य –

उत्तर – हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकार अमरकान्त द्वारा रचित कहानी ‘बहादुर’ एक आत्म कथात्मक है, जो मध्यम वर्गीय परिवार में नौकर के साथ परिवारजनों के द्वारा किये गये अत्यधिक कठोर एवं असभ्य व्यवहार की कहानी है इसमें समाज में उच्च वर्गीय परिवार का निम्न वर्ग के लोगों के प्रति ऊंच-नीच के भेद के कारण उत्पन्न तनाव का चित्रण किया गया है। आधुनिक समाज में झूठे प्रदर्शन और दिखावे के शान-शौकत में विश्वास करता है, परन्तु एक निम्न और गरीब व्यक्ति पर विश्वास नहीं करता है। लेखक ने निम्न वर्ग के वास्तविकता का परिचय दिया है और उसके प्रति सहानुभूति प्रस्तुत किया है।

बहादुर स्नेह और मानवीय अनुभूति का भूखा है। उसमें सहनशीलता और स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई हैं। मालिक और परिवार के सभी सदस्यों द्वारा तिरस्कार किये जाने और विश्वास न करने पर जब वह घर छोड़कर चला जाता है, तो सभी अपनी भूल स्वीकार करते हैं और अपने किये पर पश्चाताप करते हैं। लेखक का उद्देश्य अमीर और गरीब वर्ग के भेद को मिटाना है, जो मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही मिट सकता है।

अथवा

लाटी कहानी के उद्देश्य –

‘लाटी’ कहानी की कथाकार शिवानी हैं। उनकी कहानियों में पर्वतीय समाज से सम्बद्ध समस्याओं, प्रथाओं एवं मनोभावों का चित्रण पाया जाता है। लाटी कहानी का मूल उद्देश्य समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है, जिसमें लेखिका को सफलता मिली है। लेखिका ने यह संदेश भी दिया है कि यह समाज महिला का शोषण करती है। अतः उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए तथा उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए। लेखिका का यह भी उद्देश्य है कि क्षय रोग कोई असाध्य रोग नहीं है यदि परिजनों का सहयोग और सहानुभूति मिलें तो रोगी को मृत्यु से भी बचाया जा सकता है। यही कारण है कि नेपाली भाभी एक दिन अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं और बानों जो हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई थी, क्षय रोग भी उसका कुछ भी ना बिगाड़ सका।

अथवा

‘पंचलाइट’ अथवा ‘ध्रुव यात्रा’ कहानी का संक्षिप्त कथानक लिखिए।
‘पंचलाइट’ कहानी का सारांश –

उत्तर – ‘पंचलाइट’ कहानी का सारांश यह एक हिन्दी कहानी है जिसके लेखक फणीश्वर नाथ रेणु हैं। यह एक आंचलिक कहानी है जो बिहार के ग्रामीण परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती है। गांव में रहने वाली विभिन्न जातियाँ अपनी अलग-अलग टोली बनाकर रहती हैं। उन्हीं में से महतो टोली के पंचों ने पिछले 15 महीने से दंड जुर्माने के जमा पैसों से रामनवमी के मेले में इस बार पेट्रोमेक्स खरीदा पेट्रोमैक्स खरीदने के बाद बचे हुए 10 रूपयों से पूजा की सामग्री खरीदी गई पेट्रोमैक्स यानी पंचलाइट को देखने के लिए टोली केसभी बालक, औरतें एवं मर्द इकट्ठा हो गये और सरदार ने अपनी || पत्नी को आदेश दिया कि वह इसके पूजा-पाठ का प्रबंध करें।

पंचलाइट को जलाने की समस्या – महतो टोली के सभी जन ‘पंचलाइट’ के आने से अत्यधिक उत्साहित हैं, लेकिन उनके सामने एक बड़ी समस्या यह आ गई कि पंचलाइट जलाएगा कौन? क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसे जलाना नहीं आता। महतो टोली के किसी भी घर में अभी तक ढिबरी नहीं जलाई गई थी, सभी पंचलाइट के ना जलने से पंचों के चेहरे उतर गये। राजपूत टोली के लोग उनका मजाक बनाने लगे। जिसे सबने धैर्यपूर्वक सहन किया। इसके बावजूद पंचों ने तय किया कि दूसरी टोली के व्यक्ति की मदद से पंचलाइट नहीं जलाया जाएगा, चाहे वह बिना जले ही पड़ा रहे।

टोली द्वारा दी गई सजा भुगत रहे गोधन की खोज- गुलरी काकी की बेटी मुनरी गोधन से प्रेम करती थी और उसे पता था कि गोधन को पंचलाइट जलाने आता है, लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का-पानी बंद कर रखा था। मुनरी ने अपनी सहेली कनेली को और कनेली ने यह सूचना सरदार तक पहुंचा दी कि गोधन को पंचलाइट जलाना आता है। सभी पंचों ने सोच-विचार कर अंत में निर्णय लिया कि गोधन को बुलाकर उसी से पंचलाइट जलवाया जाए।

गोधन द्वारा पंच लाइट जलाना– सरदार द्वारा भेजे गये छड़ीदार के कहने से गोधन के नहीं आने पर उसे मनाने गुलरी काकी गयी। तब गोधन ने आकर पंचलाइट में तेल भरा और जलाने के लिए ‘स्पिरिट’ मांगा। स्पिरिट के अभाव में उसने नारियल के तेल से ही पंचलाइट जला दिया। पंचलाइट के जलते ही टोली के सभी सदस्यों में खुशी की लहर दौड़ गई। कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में महावीर स्वामी की जय ध्वनि की और कीर्तन शुरू हो गया।

पंचों द्वारा गोधन को माफ करना- गोधन ने जिस होशियारी से पंचलाइट को जला दिया, उससे सभी प्रभावित हुए। गोधन के प्रति सभी लोगों के दिल का मैल दूर हो गया। गोधन ने सभी का दिल जीत लिया। मुनरी ने बड़ी हसरत भरी निगाहों से गोधन को देखा। सरदार ने गोधन को बड़े प्यार से अपने पास बुला कर कहा कि “तुमने जाति की इज्जत रखी है।” तुम्हारे सात खून माफ

“खुब गाओ सलीमा का गाना।” अन्त में गुलरी काकी ने गोधन को रात के खाने पर आमंत्रित किया। गोधन ने एक बार फिर से मुनरी की ओर देखा और नजर मिलते ही लज्जा से मुनरी की पलके झुक गई।

अथवा

ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश

ध्रुवयात्रा – मनोवैज्ञानिक कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ‘ध्रुवयात्रा’, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। इसमें दर्शन एवं मनोविज्ञान का समन्वय कर मानवीय संवेदना को अभिव्यक्ति प्रदान की गई है। लेखक ने प्रेम की पवित्रता को | आदर्शवाद की कसौटी पर कसने या परखने का प्रयास किया है। विजेता के रूप में राजा रिपुदमन बहादुर कहानी का मुख्य पात्र राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप के नगरों की बधाइयाँ लेते हुए मुंबई और फिर वहां से दिल्ली आते हैं। उनकी प्रेयसी | उर्मिला अन्य खबरों की तरह ही इस खबर को भी पड़ती हैं, लेकिन किसी प्रकार की व्याकुलता या जिज्ञासा प्रकट नहीं करती। राजा रिपुदमन बहादुर एवं उर्मिला के बीच प्रेम संबंध-राजा रिपुदमन एवं उर्मिला के बीच काफी पहले से प्रेम संबंध है लेकिन उन दोनों ने परस्पर विवाह नहीं किया है। रिपुदमन विवाह को बंधन मानते हैं। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारूति से मिलते हैं, क्योंकि उन्हें नींद कम आने तथा मन नियंत्रण में नहीं रहने की समस्या महसूस होती है। आचार्य उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बताते हैं।

राजा रिपुदमन की उर्मिला से मुलाकात राजा रिपुदमन ने उर्मिला से विवाह नहीं किया है, किन्तु उन दोनों के प्रेम संबंधों का कारण उनकी एक संतान है। उर्मिला राजा से मिलने आई तो साथ- में अपने बच्चे को भी लाई, जिसके नाम को लेकर उन दोनों के बीच चर्चा होती है। दोनों बात करने के लिए जमुना किनारे पहुँच जाते हैं। वहाँ उर्मिला राजा से कहती हैं कि तुम अब मेरी व मेरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त हो । अब तुम निश्चिंत होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करो।

आचार्य ( उर्मिला के पिता) द्वारा विवाह के लिए दबाव डालना- राजा रिपुदमन आचार्य को बताते हैं, कि उर्मिला पहले विवाह के लिए उद्यत थी, जबकि वह तैयार नहीं थे, गर्भधारण करने के बाद वह विवाह के लिये तैयार नहीं थे। किन्तु उर्मिला ने उन्हें ध्रुव यात्रा पर भेज दिया। अब लौट आने पर वह प्रसन्न नहीं है वह कहती हैं, कि यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं होती सिद्धि तक जाओ जो मृत्यु के पार है। आचार्य मारूति राजा को बताते हैं, कि उर्मिला उन्हीं की बेटी है और तुम लोग विवाह कर के साथ-साथ यही रहो। अपने आचार्य पिता की बात उर्मिला नहीं मानती हैं। उनका अंत समय आने पर भी उर्मिला उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं करती हैं। और अपने पिता से स्वयं को भूल जाने के लिए कहती हैं।

उर्मिला के दृढ़ संकल्प के सामने रिपुदमन का झुकना – जब राजा रिपुदमन को यह विश्वास हो गया कि उर्मिला किसी भी प्रकार अपने निश्चय से नहीं हटने वाली है, तो वह पूछते हैं कि उन्हें कब जाना है? तो उर्मिला कहती है कि जब हवाई जहाज मिल जाए, राजा उसी समय शटलैंड के लिए पूरा जहाज बुक कर लेते हैं, जो तीसरे दिन ही जाने वाला होता है इतनी जल्दी जाने की सुनकर उर्मिला थोड़ी भावुक हो जाती हैं, लेकिन रिपुदमन कहते हैं कि उर्मिला रूपी स्त्री के अंदर छिपी प्रेमिका की यही इच्छा है। रिपुदमन की दक्षिणी ध्रुव जाने की तैयारी इस खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मच गई। लोगों की उत्सुकता का ठिकाना न रहा। उर्मिला सोच रही थी कि आज उनके जाने की अंतिम संध्या है राष्ट्रपति की ओर से भोज दिया गया होगा एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े लोग उसमें शामिल होंगे। कभी वह अनंत शून्य में देखती तो कभी अपने बच्चे में डूब जाती।

राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या करना- तीसरे दिन जो जाने का दिन था, उर्मिला ने अखबार पढ़ा- राजा रिपुदमन सवेरे खून से भरे पाये गये। गोली का कनपटी के आर-पार निशान है। अखबार में विवरण एवं विस्तार के साथ उनसे संबंधित अनेक सूचनाएं थी, जिन्हें उर्मिला ने अक्षर-अक्षर सब पढ़ा।

राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या से पहले लिखा गया पत्र – राजा ने अपने पत्र में लिखा है कि “दक्षिणी ध्रुव जाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वे जाना चाहते थे क्योंकि इस बार उन्हें वापस नहीं लौटना था। लोगों ने इसे मेरा पराक्रम समझा लेकिन यह छलावा है क्योंकि इसका श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए। मैं अपने होशोहवास में अपना जीवन समाप्त करके किसी भी परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के लिए मेरी आत्मा की रक्षा

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